गुजरता जाता है वक़्त
वक़्त को पकड़ते-पकड़ते,
भूलता जाता हूँ अपनी पहचान 
वक़्त को पहचानते-पहचानते,
खोता जाता है वक़्त 
खोये वक़्त को समेटते-समेटते,
खुद से लड़ जाता हूँ 
अपने वक़्त से लड़ते-लड़ते,
खुद उखड़ता जाता हूँ 
भागते वक़्त को रोकते-रोकते...
जी लिया वक़्त को जिस वक़्त 
बस वही वक़्त अपना होता है 
वरना गुम जाती है आवाज़ 
बस वक़्त को पुकारते-पुकारते ...
.       .....रजनीश (29.11.2012)