Saturday, June 11, 2011

तस्वीर एक रात की

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एक कोने में सिमटी
ओढ़े एक चादर
रात हौले से उठती है
धीरे धीरे लेती सब कुछ
अपने आगोश में
जर्रे-जर्रे में बस जाती है रात ,
एक खामोशी  गिनती है
रात के कदम,
लहराकर चादर रात की
गिरा देती है एक किताब
एक पन्ना अधूरी नज़्म,
खो जाती है कलम
रात के साये में,
लैंप की रोशनी
घुल जाती है अँधेरों में,
रात की अंगुलियाँ
तैरती हैं पियानो पर
रात से टकराकर गूँजते सुर
समाने लगते हैं किताब में,
एक और खामोशी टूट जाती है भीतर
तब  सिर्फ तुम याद आते हो ....
...रजनीश (11.062011)

11 comments:

  1. बहुत सुंदर हैं ...
    रात से बात करते शब्द ...
    गुनगुनाते धीरे धीरे ..
    और बनाते -ये कविता ..!!

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  2. बहुत प्यारे शब्दों से सजी मनमोहक कविता.

    सादर

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  3. बहु्त सुन्दर रचना।

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  4. एक और खामोशी टूट जाती है भीतर
    तब सिर्फ तुम याद आते हो ....aur kuch yaad bhi nhi rahta hai... bhut hi khubsurat abhivakti...

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  5. मनमोहक कविता. सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  6. लहराकर चादर रात की
    गिरा देती है एक किताब
    एक पन्ना अधूरी नज़्म,
    खो जाती है कलम
    रात के साये में,
    लैंप की रोशनी
    घुल जाती है अँधेरों में,
    रात की अंगुलियाँ
    तैरती हैं पियानो पर
    रात से टकराकर गूँजते सुर
    समाने लगते हैं किताब में,
    एक और खामोशी टूट जाती है भीतर
    तब सिर्फ तुम याद आते हो ....

    bahut sunder rachna...

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  7. beautiful choice of words..
    creatively written
    Loved it.

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  8. कामिनीJune 13, 2011 at 10:07 AM

    बहुत सुन्दर एक अजीब सा एहसास

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...