Friday, January 13, 2012

एक बूंद


ओस की इक बूंद 
जमकर घास पर, 
सुबह -सुबह 
मोती हो गई,  

ठंड की चादर ने 
दिया था उसे ठहराव 
कुछ पलों का, 
 फिर वो बूंद
सूरज की किरणों 
पर बैठ उड़ गई, 

छोड़कर घास की हथेली पर
एक मीठा अहसास
कह अलविदा 
 हवा में खो गई,

कुछ पलों का जीवन 
और दिल पर ताजगी भरी 
नमकीन अमिट छाप 
 एक बूंद छोड़ गई ...

घास पर उंगली फिरा 
महसूस करता हूँ 
उस बूंद का वजूद
जो भाप हो गई ...
...............................

एक बूंद में होता है सागर 
बूंदों से  दरिया बनता है 
बूंदों से बनती है बरखा
बूंद - बूंद शहद बनता है 
  
भरा होता है एक बूंद में  
दर्द जमाने भर का 
इकट्ठी होती  है खुशी बूंद-बूंद 
बूंद बूंद शराब बनती है 

प्यार की इक बूंद का नशा उतरता नहीं
इक बूंद सर से पैर भिगो देती है 
कहानी ख़त्म कर देती  है एक बूंद
एक बूंद ज़िंदगी बना देती है 
...
बूंद-बूंद चखो जाम ज़िंदगी का 
बूंद-बूंद जियो ज़िंदगी ....
...रजनीश (12.01.2012)

15 comments:

  1. bahut sundar chitran kiya hai subah ki auos ki boond ka.behtreen rachna.

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  2. बूँद बूँद हर जीवन फैली..

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  3. ......aur main oos ke moti choonne lagi......

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  4. बूँद बूँद से घट भरा...
    शब्द शब्द से ह्रदय...
    बहुत सुन्दर..

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  5. बहुत ही बढ़िया सर!



    सादर

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  6. boond..boond kah dala..
    boond boond sa dard..
    boond boond ne sameta
    boond boond sa khwab..

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  7. कल 14/1/2012को आपकी पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. boond par aapne bahut sundar likha

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  9. बूँद बूँद से आपने सागर भर दिया.

    भरा होता है एक बूँद में
    दर्द ज़माने भर का
    इकट्ठी होती है खुशी बूँद बूँद
    बूँद बूँद शराब बनती है.

    क्या बात है. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  10. बहुत सुंदर एहसास जगा गई आपकी रचना !

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  11. रजनीश जी कमाल की रचना।
    बूँद बूँद से सागर बनता
    बूँद बूँद से
    बूँद बूँद से दरिया बहता
    बूँद बूँद से
    बूँद बूँद कर पानी बरसे
    बूँद बूँद से
    धीरे धीरे प्याले भरते
    बूँद बूँद से
    धीरे धीरे मदिरा चढ़ती
    बूँद बूद से
    एक बूँद बस मिले प्यार की
    जीवन सँवरे
    बूँद बूँद से

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...