बार बार करें यातरा, रह रह रणभेरी बजाय
पर भ्रष्टाचारी दानव को, कोई हिला ना पाय
कहीं गड़ी है आँख, तीर कहीं और चलाय
पर भ्रष्टाचारी दानव की, सब समझ में आय
बेदम या दमदार बिल, में क्यूँ रहते उलझाय
गइया कोई भी किताब, पल में चट कर जाय
हम कर लें तो भ्रष्ट हैं, वो करे संत कहलाय
अब क्या है भ्रष्टाचार, ये प्रश्न न हल हो पाय
भरते जाते सब जेल, तिलभर जगह बची न हाय
भ्रष्टाचार बाहर खड़ा, देखो मंद मंद मुसकाय
.....रजनीश (04.05.12)
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन दोहे //
ReplyDeleteMY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
achchi kahi......
ReplyDeleteयथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
ReplyDeleteसच को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteसारा जग भरमाय कि भैया कौनो करो उपाय..
ReplyDeleteहम कर लें तो भ्रष्ट, वो कर लें तो संत..
ReplyDeleteयही तो भ्रष्टाचार की महिमा है।
sundar srijan
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