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Friday, February 27, 2015
राह-ए-इश्क
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राह-ए-इश्क में क्यूँ गमों की भीड़ सताती है हो कितनी ही काली रात सुबह जरूर आती है बाग-ए - बहार दूर सही गमोसितम की महफ़िल से ...
Wednesday, April 24, 2013
कुछ यूं करके भी देख ...
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हवा में हरदम ऊंचा उड़ता है कभी जमीं पर चलकर देख, फूलों का हार पहन इतराता है कभी कांटे सर रखकर देख, दौलत और दावतें...
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Monday, August 8, 2011
खोज
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कोशिश करता रहता हूँ खुद को जानने की चल रहा हूँ एक लंबे सफर में खुद को समझने की सब करते होंगे ये जो जिंदा है , मरे हुए ...
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Thursday, August 4, 2011
मंज़िल
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आओ उस ओर चलें जीवन की धारा में हँसते हुए , दुखों को साथ लिए आओ चलें , थामे हाथ , एक स्वर में गाते एक ताल पर नाचते पैर बैठें उस नाव ...
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