निकले है पूरब से
पर मेरा भी सूरज, पूरब से निकले
ये तय नहीं....
तय है कि, रात के बाद
आती है एक सुबह
पर हर रात की , एक सुबह हो,
ये तय नहीं....
तय है कि, पानी भाप होकर
बन जाता है बादल
पर उमड़-घुमड़ कर यहीं आ बरसे
ये तय नहीं....
तय है कि, बिन आँखों के
नज़ारा दिख नहीं सकता
पर आंखों से सब दिख जाएगा
ये तय नहीं ....
तय है कि, ज़िंदगी पूरी हो
तो आ जाती है मौत,
पर मौत से पहले मौत ही ना हो
ये तय नहीं ....
तय है कि, ज़िंदगी पूरी हो
तो आ जाती है मौत,
पर मौत होने से कोई मर ही जाए
ये तय नहीं ....
तय है कि, मेहनत का फल
मीठा होता है
पर हर मेहनत का फल निकले
ये तय नहीं...
ये तय है कि, प्यार भरी हर अदा
खूबसूरत होती है
पर खूबसूरत अदा प्यार ही होगी
ये तय नहीं ...
...........रजनीश (20.06.2013)
11 comments:
विद्रोही, विरागी जीवनी।
तय होते हुये भी बहुत कुछ तय नहीं होता ... बहुत सुंदर और गहन रचना
loved the way you pointed out inherent uncertainty that lies all around..
Beautifully written !!
loved the way you pointed out inherent uncertainty that lies all around..
Beautifully written !!
कुछ तय नहीं है....
जीवन हर दिन नए मोड़ लिए आता है..
सुन्दर रचना..
अनु
मेहनत का फल मिले यह जरुरी नहीं पर इसलिए मेहनत करना छोड़ देना भी उचित नहीं.
सुंदर रचना.
वाह,क्या सटीक बात कही है
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .....
बहुत सुंदर, कमाल की भावाव्यक्ति
जीवन में सब कुछ तय होकर भी, कुछ भी तय नही , बहुत सुंदर, आभार ,यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/04/blog-post_28.html
http://kuchmerinazarse.blogspot.in/2013/06/4.html
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