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Sunday, January 25, 2015

चलो कुछ लिखा जाए


जुबां पर लफ्ज जब रुक जाएँ
तो आए लिखने का मौसम
दिल को एक खयाल जब सताए
तो आए लिखने का मौसम
जब कोई ज़ख्म कुरेद जाए
तो आए लिखने का मौसम
वो जाम आँखों से जब पिलाए
तो आए लिखने का मौसम
जब एक लम्हा ठहर जाए
तो आए लिखने का मौसम
जब वक्त से बिछड़ जाएँ
तो आए लिखने का मौसम
जब मनचाहा मिल ना पाए
तो आए लिखने का मौसम
जब एक हसरत पूरी हो जाए
तो आए लिखने का मौसम
दिल में जब तनहाई उतर आए
तो आए लिखने का मौसम
दिल से जब दिल मिल जाए
तो आए लिखने का मौसम

...........रजनीश (25.01.15)

Thursday, July 26, 2012

मैं जानता हूँ सब कुछ, फिर भी ...


मैं जानता हूँ
मेरी चंद ख़्वाहिशों के रास्ते
नक़्शे पर दिखाई नहीं देते,
मैं जानता हूँ
मेरे कुछ सपनों के घरों का पता
किसी डाकिये को नहीं,
मैं जानता हूँ
मेरे चंद अरमानों का बोझ
नहीं उठा सकते मेरे ही कंधे,
मैं जानता हूँ
मेरी तन्हाई मुझे ही
नहीं रहने देती अकेले ,
मैं जानता हूँ
मेरे कुछ शब्दों को
आवाज़ मिली नहीं अब तक,
मैं जानता हूँ
राह पर चलते-चलते
बहुत कुछ पीछे छूटता जाता है,
मैं जानता हूँ
कुछ लम्हे निकल जाते हैं
बगल से बिना मिले ही,
मैं जानता हूँ
बरस तो जाएगी पर
बारिश नहीं भिगोएगी कुछ खेतों को
मैं जानता हूँ ये सब कुछ,

मैं जानता हूँ सब कुछ...
फिर भी लगाए हैं कुछ बीज मैंने
फिर भी करता हूँ कोशिश मिलने की हर लम्हे से,
मैं जानता हूँ सब कुछ...
फिर भी लगा हूँ बटोरने रास्ते से हर टुकड़ा
फिर भी सँजोये रहता हूँ अनकहे शब्दों को जेहन में  
मैं जानता हूँ सब कुछ...
फिर भी कहता रहता हूँ तन्हाई से दूर जाने को
फिर भी देता हूँ डाकिये को अरमानों के नाम कुछ पातियाँ  
मैं जानता हूँ सब कुछ...
पर अक्सर नक्शों में ढूँढता हूँ
सपनों के वो रास्ते ...

मैं जानता हूँ
कि आस है मुझे कुछ करिश्मों की ….
.....रजनीश (26.07.12)
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