तब भी दूरियाँ बनाए रखीं
और हम आगवानी के लिए
अपना घर संवारने लगे
बन गई है मसरूफियत
कुछ और नहीं मिला
तो सुकून तलाशने लगे
नहीं करेंगे कभी याद उन्हें
पर तन्हाई ने सताया
तो उन्हें ही पुकारने लगे
अब तक जो इंसान ने सीखा
हमें सिखाता है शिक्षक
राह बेहतर हो जाने की
हमें दिखाता है शिक्षक
साक्षर हमें बनाता
देता नया नजरिया शिक्षक
कुछ कर सकने को विद्या में
पारंगत करता है शिक्षक
विद्यादान महादान है
सबसे ऊंचा शिक्षक
करता समाज की सेवा
समाज को यश दिलाता है शिक्षक..
...रजनीश (05.09.18)
शिक्षक दिवस पर
टीवी स्क्रीन पर
बार बार आ रहा है
ये मैसेज
देखिए कहीं बारिश
तो नहीं हो रही
आपके टीवी को सिग्नल
नहीं मिल रहा
बारिश के मौसम में
हर दिन की ये कहानी है
बिना टीवी के
सुबहो शाम अब बितानी है
स्क्रीन को ताकता हूँ
इधर उधर से झांकता हूँ
कोई चित्र ही नही
कोई समाचार नही
कोई खबर नहीं
कोई बाजार नहीं
टीवी पर कुछ
दिखता ही नहीं
न घटना न दुर्घटना
न मरना न कटना
न झगड़ा न लड़ाई
न सास न भौजाई
आदत सी थी
हल्ले गुल्ले की
देखकर ये सब
भेजा घूम जाता था
अपनी तकलीफों से परेशान
और परेशान हो जाता था
देखता था ये सब
लगता है
थोड़े से सुकून के लिए
कि बाहर भी बड़ा गम है
नहीं गम सिर्फ मेरे लिए
अब हर रोज की बारिश का
असर नजर आ रहा है
घर पर शोर की जगह
शांति ने ले ली है
टीवी बंद रहता है
और अब तो मजा आ रहा है
पहले दर्द बढ़ता जाता था
अब सुकून आ जाता है
जो टीवी पर जाया हो जाता था
वो वक्त काम आ जाता है
यूं ही होती रहे बारिश
ताकि टीवी बंद रहे
बुद्धू बक्से की रहे छुट्टी
घर में कुछ सुकून रहे
...रजनीश(05.08.18)
है चाहत बहुत जरूरी एक रिश्ता बनाने में
भूलना चाहत का जरूरी एक रिश्ता निभाने में
यूँ तो चुनी थी डगर सीधी सी ही मैंने मगर
आ गये मोड़ कहाँ से इतने मेरे फसाने में
रिश्ते बन गए समझौते जज्बात हैं आँखें मींचे
बढ़े शोरगुल और तन्हाई तरक्कीयाफ्ता जमाने में
खट्टी मीठी कुछ यादें पूरे और टूटने सपने
रिश्तों के ताने बाने कितना कुछ मेरे खजाने में
उनकी हर बात से इत्तेफाक है आदत हमारी
वर्ना दम ही कहाँ था उनके इस नये बहाने में
हरदम मैं अपने साथ खुद को लिए चलता हूँ
इसीलिए डरता ही नहीं कभी भी मैं वीराने में
कितना है किसे नशा क्यूँ इसकी रखूं खबर
उतनी में ही झूमता हूँ मैं जितनी मेरे पैमाने में
......रजनीश (24.07.18)
बारिश तब भी होती थी
बारिश अब भी होती है
पहले बारिश के खयाल से ही
भीग जाया करते थे
अब ऐसे हो गए हैं
कि बूंदें फिसल जाती हैं बदन से
दिल सूखा रह जाता है
बारिश तब भी होती थी
बारिश अब भी होती है
एक वक्त था जब
गिरती बूंदों को गले लगाने
बादलों के पीछे भागते थे
अब घर में कैद हो
करते हैं इंतजार
बादलोँ के बरस जाने का
बारिश तब भी होती थी
बारिश अब भी होती है
..रजनीश (15.06.18)
उनकी बातों मेँ अपना सँसार देखा है
उन्हें जब भी देखा यार देखा प्यार देखा है
सुना है बचपन भगवान का चेहरा होता है
उसी चेहरे पे दरिंदों का अत्याचार देखा है
जो देखकर भी अनदेखा किया करती थीं
आज उन बेफिक्र आखों में इन्तज़ार देखा है
ईमान की तलाश हमें ले गई जहाँ जहाँ
वहाँ इन्सानियत की खाल में भ्रष्टाचार देखा है
खुद को बचा रखने बेच देते हैं खुद को
जहाँ अरमानों के सौदे ऐसा बाजार देखा है
इंसानियत के मरने की खबर बड़ी पुरानी है
पर मिल जाती है जिंदा ये चमत्कार देखा है
बीते वक्त को पुकार देखा ललकार देखा
कभी लौटते कारवां को कभी सिर्फ गुबार देखा है
......रजनीश (12.05.18)