वक्त गुजरता जाता है
समय बदलता जाता है
इक पल आता
इक पल जाता
पल दर पल मंजर बदलता
संसार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है
समय बदलता जाता है
इक पल आता
इक पल जाता
पल दर पल मंजर बदलता
संसार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है
जो मैं था
वो अब मैं नहीं
जो तुम थे
वो अब तुम नही
पल दर पल बदलते धागे
करार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है
वो अब मैं नहीं
जो तुम थे
वो अब तुम नही
पल दर पल बदलते धागे
करार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है
जो कोपल थी
अब पौधा है
जो पौधा था
अब दरख्त है
धरती पर दिन रात बदलते
और उसका श्रृंगार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है
अब पौधा है
जो पौधा था
अब दरख्त है
धरती पर दिन रात बदलते
और उसका श्रृंगार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है
जो बूंद में था
अब दरिया में
जो दरिया में
अब सागर में
सागर से बादल में जा
कहीं और बरसता जाता है
समय बदलता जाता है
अब दरिया में
जो दरिया में
अब सागर में
सागर से बादल में जा
कहीं और बरसता जाता है
समय बदलता जाता है
ना सूरज वही
ना चांँद वही
ना धरती और ब्रम्हांड वही
संग घड़ी की टिक-टिक
कण-कण का रुप आकार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है..
ना चांँद वही
ना धरती और ब्रम्हांड वही
संग घड़ी की टिक-टिक
कण-कण का रुप आकार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है..
....रजनीश (28.05.18)
1 comment:
समय पर लिखी गयी बेहतरीन रचना। कुछ भी स्थायी नहीं है सब कुछ समय के साथ बदल जाता है।
सादर
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