है चाहत बहुत जरूरी एक रिश्ता बनाने में
भूलना चाहत का जरूरी एक रिश्ता निभाने में
यूँ तो चुनी थी डगर सीधी सी ही मैंने मगर
आ गये मोड़ कहाँ से इतने मेरे फसाने में
रिश्ते बन गए समझौते जज्बात हैं आँखें मींचे
बढ़े शोरगुल और तन्हाई तरक्कीयाफ्ता जमाने में
खट्टी मीठी कुछ यादें पूरे और टूटने सपने
रिश्तों के ताने बाने कितना कुछ मेरे खजाने में
उनकी हर बात से इत्तेफाक है आदत हमारी
वर्ना दम ही कहाँ था उनके इस नये बहाने में
हरदम मैं अपने साथ खुद को लिए चलता हूँ
इसीलिए डरता ही नहीं कभी भी मैं वीराने में
कितना है किसे नशा क्यूँ इसकी रखूं खबर
उतनी में ही झूमता हूँ मैं जितनी मेरे पैमाने में
......रजनीश (24.07.18)
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