Wednesday, July 20, 2011

एक नई कहानी

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हुई ख्वाबों ख़यालों की बातें पुरानी
सुनाता हूँ तुमको आज की है कहानी

अब होते नहीं प्यार में ढाई आखर
न मजनूँ परवाना न लैला दीवानी

खो गया  बचपन कंक्रीट के जंगलों में
जमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी

हमाम में सब नंगे आँखों पर पट्टी है
ईमान की बस्ती में  छाई है वीरानी

होली रोज़ लहू की   मौत के पटाखे  चलें
त्यौहारों का शहर देख होती है हैरानी

न शराफत  न गैरत न इज्जत न मुहब्बत
हैवानियत का मज़ा  इंसानियत की है परेशानी

......रजनीश (19.07.2011)

14 comments:

Rajesh Kumari said...

bahut achcha kataksh kiya hai.last ki panktiyan to lajabaab hain.badhaai.

रविकर said...

badhaai rajnish ji ||
sundar rachna

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया सर।

सादर

Anita said...

होली रोज़ लहू की मौत के पटाखे चलें
त्यौहारों का शहर देख होती है हैरानी

आज के हालातों को सच्चाई से बयान करती रचना !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

the best

Kailash Sharma said...

खो गया बचपन कंक्रीट के जंगलों में
जमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी

...बहुत सच कहा है..बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति..

विभूति" said...

behtreen rachna....

Patali-The-Village said...

बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति|

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

एक सुन्दर रचना के बधाई स्वीकार करें रजनीश जी...
सादर....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज के सन्दर्भ में अच्छी प्रस्तुति

ana said...

khubsurat rachana

Dr (Miss) Sharad Singh said...

खो गया बचपन कंक्रीट के जंगलों में
जमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी
हमाम में सब नंगे आँखों पर पट्टी है
ईमान की बस्ती में छाई है वीरानी


वर्तमान दशा पर कटाक्ष करती शानदार ग़ज़ल...

Amrita Tanmay said...

Vaah! bahut umda lekhni hai aapki . achchha laga

Amrita Tanmay said...

Vaah! bahut umda lekhni hai aapki . achchha laga

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