कई बार की थी
कोशिश कि पढ़ सकूँ
उनकी आँखों में लिखी
एक नज़्म
पर नज़रें हर बार
बस देख सकीं
उन शब्दों की सूरत
और पढ्ना ही ना हुआ
वो नज़्म आज भी
रहती है मेरे सिरहाने
पर जो लिखा है
कभी पढ़ा ना गया
पहचान ना सका शब्दों को
हाँ जब भी छुआ उन्हें
वो नम ही मिले हमेशा
और उनके पार मिली
वही आँखें
वो कागज़ भी कभी
पुराना ना हुआ
...रजनीश (28.09.11)
18 comments:
♥
सचमुच गीली नज़्म …
बहुत ख़ूब !
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
गीली नज्में आंसू सुखा देती हैं.
बहुत खूब लिखा है आपने.
कोमल से एहसास से भीगी सी नज़्म ..
सुन्दर कविता
wo kagaz purana hoga bhi nahi...
sach me geeli si najm.sunadar
bahut pyaari komal si najm.
भीगे अहसासो की भीगी नज़्म्।
कुछ शब्द हमेशा नाम ही मिलते हैं ... सुन्दर रचना !
bahot khoob......
वाकई शब्दों के पीछे की कहानी पढ़ने की नहीं महसूस करने की बात है जो नमी के रूप में अपने निशान छोड़ गयी है... सुंदर अहसासों से सजी नज्म..
खुबसूरत एहसास ..
सीधा दिल में उतरती,मुस्कान लाती खूबसूरत पंक्तियां...
भावों में आस का नयापन बना रहा।
सुन्दर अभिव्यक्ति
इन गीली नज्मों को पढ़ना आसान कहाँ होता है ... लाजवाब रचना है ...
बेहतरीन ...गीली नज़्म...
sundar prstuti...
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