Tuesday, October 4, 2011

महात्मा

1313717229673
एक चश्मा
एक लाठी
एक धोती
एक घड़ी
एक जोड़ी चप्पल
एक दुबली पतली काया
एक विशाल व्यक्तित्व
एक सिद्धान्त
एक विचार
एक विशिष्ट जीवन
एक दृष्टा
एक पथ प्रदर्शक
एक रोशनी
एक क्रांतिकारी
एक महामानव
एक महात्मा
...
आज फिर है सपनों में
उसे लौटना होगा
फिर बनाना होगा थोड़ा नमक
कुछ सूत कातना रह गया है बाकी
एक और यात्रा शेष
सत्य के साथ एक और प्रयोग
उस जैसा कोई नहीं
जो पीर पराई जाने
...रजनीश ( 2 अक्तूबर गांधी जयंती पर )

11 comments:

रचना दीक्षित said...

आना ही होगा महात्मा. बेहतरीन प्रस्तुति

रश्मि प्रभा... said...

bahut sahi ...

रविकर said...

बढ़िया प्रस्तुति ||

आपको --
हमारी बहुत बहुत बधाई ||

प्रवीण पाण्डेय said...

बापू, तुम्हे प्रणाम।

विवेक रस्तोगी said...

वाह बहुत अच्छी कविता

Patali-The-Village said...

बहुत सार्थक कविता| आप को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Arun sathi said...

मर्मस्पर्सी

सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.

आभार

Anita said...

बहुत सुंदर ! थोड़े से शब्दों में बापू का पूरा जीवन दर्शन आपने प्रस्तुत कर दिया है.. एक बापू हममें से हर एक के भीतर है...

रेखा said...

एकदम सटीक ..

दिगम्बर नासवा said...

सच कहा है .. पर आज गांधी को अपने कुछ सिद्धांत बदल कर आना होगा ...

Anonymous said...

उम्मीदों का सुनहरा आँगन ...ऐसे ही सजाये रखियेगा ...

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....