Wednesday, November 23, 2011

तलाश

 2011-10-30 11.39.48
ढूँढते थे तुमको हर कहीं
हर रास्ता हर एक गली
हरदम लगा  कि  तुम हो
पर तुम मिले कहीं नहीं

गुम गईं सारी मंज़िले
भटकते रहे हर डगर  
बदले कई आशियाने
चलता रहा सफ़र

तलाश उसकी हर कहीं
अब अपनी हो चली
ढूँढते हैं खुद को हम
क्या आसमां क्या जमीं
....रजनीश (23.11.2011)

12 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सबकी तलाश अन्ततः एक ही हो जाती है, सरल भी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तलाश जारी रहे ... अच्छी प्रस्तुति

Anita said...

उसको खोजते खोजते खुद की तलाश, यह तो होना ही था, वह तो भीतर ही है, खुद से ही जाता है खुदा का रास्ता...

रश्मि प्रभा... said...

ab khud ki talash ...

mridula pradhan said...

choti si .....pyari si.....

अनुपमा पाठक said...

तलाश उसकी हर कहीं
अब अपनी हो चली

ज़ारी रहे तो तलाश पूरी भी होगी!

vandana gupta said...

बेहद गहन अभिव्यक्ति।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

तलाश उसकी हर कहीं
अब अपनी हो चली
ढूंढते हैं खुद को हम
क्या आसमां क्या जमीं
..........सुन्दर पंक्तियाँ.

विभूति" said...

तलाश उसकी हर कहीं

अब अपनी हो चली

ढूँढते हैं खुद को हम
बहुत ही सुन्दर भाव......
क्या आसमां क्या जमीं....

रेखा said...

गहरी अभिव्यक्ति ...

Saru Singhal said...

A journey of finding someone...Beautiful expression!

Jeevan Pushp said...

बहुत सुन्दर ..!

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....