Thursday, June 21, 2012

सीलन

दर्द की बूंदें
बरस बरस
भिगोती रहीं
उस छत को
जो बनाई थी
भरोसे के गारे से

समाता रहा पानी 
छत से  रिस-रिस कर
रिश्तों की दीवारों में

कुछ धूल की परतें धुलीं
कुछ पानी रिसकर
मेरी जड़ों  में भी गया


फिर सूख गए सोते दर्द के
वक़्त के झोंके 
उड़ा ले गए बादलों को  
धूप भी आ गई
उतरकर पेड़ों से

पर दरारों में
जमा है पानी अब भी 
सीलन
मेरे कमरे में
अब भी मौजूद है ....
....रजनीश (21.06.2012)

10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पीड़ा रिसे, बहे पर हृदय में न उतरे और न उतरे संबंधों में। यथासंभव बचा के जो रखना है संबंधों को।

indu chhibber said...

In all your poems you employ beautiful analogies,and they tally 100%,right to the end,with what you want to convey;it is a very rare talent.

Shashiprakash Saini said...

"सीलन
मेरे कमरे में
अब भी मौजूद है"

वाह वाह
बहुत सुन्दर रचना रजनीश जी

Madhuresh said...

अब भी सीलन मौजूद है...
यादों का पानी रिसता रहता है..
यही है ज़िन्दगी..

सुन्दर अभिव्यक्ति है.
सादर

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

भरोसा भी भरोसे लायक नहीं रहा...

सुन्दर रचना...
सादर बधाई.

ANULATA RAJ NAIR said...

सीमेंट की तरह भरोसा भी मिलावटी है...............
सीलन तो होगी ही....

बहुत प्यारी रचना.

सादर

Anita said...

बहुत मार्मिक रचना...

अनामिका की सदायें ...... said...

in dararon ki seelan hai jo kabhi nahi ja sakti. ja sakti hai to bas usi se jiski vajah se chhat risna aarambh hui. kya vishwas ko khareeda ja sakta hai ? nahi....badi mushkil se aata hai aur todne wala ek pal bhi sochta nahi ..

sunder prastuti dil ko chhoo gayi.

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 25/06/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Vandana Ramasingh said...

बहुत बढ़िया प्रतीक के माध्यम से रिश्तों के दर्द को अभिव्यक्त किया आपने साधुवाद

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....