(1)
बारिश के इंतज़ार में
रुक गई थी कलम
किताब पर पड़ी रही
आसमां तकते तकते
स्याही भी सूख चली थी
पन्ने झुलस रहे थे
तब बादल उमड़ पड़े
और फिर बारिश आ गई
कुछ छींटे पन्नों पर पड़े
और भीग गए कुछ शब्द
धुल गई कुछ लाइनें
एक पन्ना फिर कोरा हो गया
कुछ लाइनों को मिटाने की कोशिश की थी
पर बूंदें उन्हें अनछुआ छोड़ गईं
भीगी किताब को सुखाया
बारिश के जाने के बाद
बदली शक्ल वाली किताब लिए
यही सोचता रहा
क्यूँ हुई ये बारिश ....
....
(2)
बारिश का इंतज़ार
रहता है बारिश होने तक
बारिश हो जाने पर
उसके जाने का इंतज़ार
जैसे मेरे लिए ही होती हो ये बारिश
न मेरे बुलाने से आती है
न मेरे मनाने से जाती है
बारिश का एक मकसद है
जिससे लेती है उसे लौटाती है
जिसका होता है पानी
उसे ही सौंपती है वापस
जमीन की होती है ये बारिश
क्यूंकि पानी भी है इसी जमीन का
पर हक़ मैं जताता हूँ अपना
इसी लिए दर्द आता है मेरे हिस्से ...
.........रजनीश (15.10.2014)
बड़े दिनों बाद लिखा है ।
पिछली कविता "बारिश के इंतज़ार"
पर खत्म की थी इसीलिए वहीं से शुरू कर रहा हूँ ...
2 comments:
बहुत ही अच्छा लिखा है ।
बारिश पर लिखी दोनों कविताएँ बहुत अच्छी लगीं...बधाई
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