शुरू होता है हर दिन
अजान की आवाज़ से
चिड़ियों की चहचहाहट
कुछ अंगड़ाइयों में
विदा होती रात से बातें
फिर धूप की दस्तक
और मंदिर के घंटे
अब लगते हैं दौड़ने
हम एक सड़क पर
जो बस कुछ देर ही सोती है
कानों में घुलता
सुबह का संगीत
कब शोर में बदल जाता है
पता ही नहीं चलता
सूरज के साथ
होती है एक दौड़
और दिनभर बटोरते हैं हम
कुछ चोटें, कुछ उम्मीदें
कुछ अपने टूटे हिस्से
और कुछ चीजें सपनों की खातिर
पर साथ इकठ्ठा होता ढेर सारा
बेवजह कचरा और तकलीफ़ें
जो दौड़ देती है हमें
ये कीमत है जो चुकानी पड़ती है
दौड़ में बने रहने के लिए
एक अंधी दौड़
एक मशीनी कारोबार
एक नशा
जो पैदा होता है
एक सपने की कोख में
और फिर उसे ही खाने लगता है
दौड़ में हमेशा सूरज जीतता है
कूद कर जल्दी से पहुँच जाता है
पहाड़ के पीछे
और जब हम पहुँचते है अपने घर
हाँफते-हाँफते और खुद को बटोरते
दरवाजे पर रात मिलती है
खुद को पलंग पर
पटक कर कब सो जाते हैं
कब खो जाते हैं
पता ही नहीं चलता ...
बहुत थका देता है सूरज ....
सूरज तो कभी नहीं कहता
दौड़ो मेरे साथ,
तो क्या लालच..
नहीं वो तो बीच रास्ते मेँ
साथ हो लेती है,
दरअसल हमें प्यार दौड़ता है ...
...रजनीश (30.11.2011 )