गुलालों के गुबार में
रंगों की बौछार में
रंगों जैसे हम खिले
आओ हम सब गले मिलें
होली के त्यौहार में...
गीतों की बहार में
ठहाकों के अंबार में
खुशियों जैसे हम खिलें
आओ हम सब गले मिलें
होली के त्यौहार में...
मस्ती के खुमार में
थिरकते संसार में
नाचते गाते हम चलें
आओ हम सब गले मिलें
होली के त्यौहार में...
प्यार की बहार में
दोस्ती की बयार में
दोस्तों जैसे सब मिलें
आओ हम सब गले मिलें
होली के त्यौहार में...
ना शिकवे ना शिकायतें
ना दुश्मनी ना अदावतें
ना झगड़े ना झंझटें
बस प्यार ही प्यार बंटे
अपनों जैसे सब लगें
आओ हम सब गले मिलें
होली के त्यौहार में...
आओ हम सब गले मिलें
होली के त्यौहार में...
होली की हार्दिक शुभकामनाएं.....
रजनीश (२४ मार्च २०२४)
बैठे-बैठे यूं ही
खुद से पूछ लिया
करते क्या हो आखिर
तुम दिन भर
सवाल वाजिब था
जवाब भी मुश्किल
क्या करता रहता हूं
मैं आखिर दिन भर
ना सब दिन समान
ना इसके हर घंटे इक जैसे
फिर करता क्या रहता हूं
बताऊं तुम्हें कैसे
कुछ शब्दों में
जीवन भर की कहानी
बखान करने
समेटूं इसे कैसे
भीतर उतर के फिर
मैंने यह जाना
ये कुछ और नहीं
बस संघर्षों का अफसाना
मैं ये करता रहता हूं
कि बस लड़ता रहता हूं
लड़ाई भीतर भी होती है
लड़ाई बाहर भी होती है
लड़ाई अस्तित्व की
खुद को बचा रखने की
लड़ाई खुद से भी होती है
लड़ाई औरों से भी होती है
लड़ाई जीवाणु से
लड़ाई विषाणु से
लड़ाई कीटाणु से
लड़ाई रोगाणु से
लड़ाई आबो हवा से
लड़ाई हालातों से
लड़ाई महामारियों से
लड़ाई बीमारियों से
तन को बचना है
वैसे ही मन को भी
तन भी लड़ता है
मन भी लड़ता है
लड़ाई तन की है
और लड़ाई मन की भी
रोगाणु तन को सताते हैं
हालात मन को सताते हैं
तन के विषाणु हैं
और मन के भी
तन के लिए वैक्सीन हैं
और मन के भी
पर हर मर्ज के लिए
वैक्सीन नहीं होता
सिर्फ वैक्सीन के सहारे
तो तैयारी अधूरी है
लड़ाई तन की हो
या लड़ाई मन की
खुद को बचाए रखने के लिए
इम्यूनिटी जरूरी है
.....रजनीश (३०.१०.२०२०, शुक्रवार)
जिंदगी अकेली नहीं
जिंदगी की साथी है जरूरत
चोली दामन का साथ
कुछ ऐसा है जैसे
जिंदगी का दूसरा नाम है जरूरत
जिंदगी के लिए जिंदा रहना जरूरी है
जिंदा रहने के लिए बहुत कुछ जरूरी है
जरूरतों के बिना जिंदगी नहीं
जिंदगी है तो जरूरी है जरूरत
जिंदगी एक पहेली है ठीक वैसी
जैसा है जरूरतों का हिसाब किताब
जरूरतों का गणित
कितना अजीब है
जरूरतों का जाल
जिंदगी का नसीब है
जरूरतों का जोड़ - घटाव
जरूरतों का गुणा - भाग
किताबों में वर्णित नहीं
जरूरतों का सीधा - सीधा गणित नहीं
एक जरूरत ,
जरूरत ही नहीं रह जाती
जब कोई और
जरूरत आ जाती है
जिसकी कभी जरूरत ही नहीं थी
वो कभी पहली जरूरत
बन जाती है
एक जरूरत में
दूसरी जरूरत मिल जाने से
जरूरत ही खत्म हो जाती है
कभी कई जरूरतों को
आपस में जोड़ने से
एक जरूरत बन जाती है
जरूरतें पूरी भी होती हैं
पर जरूरतें खत्म नहीं होतीं
जरूरतें थोड़ी भी लगें तो
जरूरतें कम नहीं होतीं
जरूरतों की कीमत होती हैं
कुछ जरूरतें बेशकीमती होती हैं
जरूरतों को जानना होता है
कुछ जरूरतों को भुलाना होता है
जरूरतों को मानना होता है
कुछ जरूरतों को मनाना होता है
गणित में
एक तरफ शून्य होता है
दूसरी तरफ अनंत
एक तरफ कुछ नहीं
दूसरी तरफ सब कुछ पूर्ण
पर जरूरत का सिद्धांत
तो अपूर्णता का सिद्धांत है
क्यूंकि जरूरतें अनंत है
पर जरूरतें अपूर्ण हैं
अनंत भी हैं और अपूर्ण भी हैं
जब तक जिंदगी है
जरूरतें अपूर्ण ही रहती हैं
जरूरतें ख़तम
तो जिंदगी ख़तम
जिंदगी और जरूरत
दोनों को एक दूसरे की जरूरत है
एक समीकरण है
दोनों के बीच
जिसका हल मिलता नहीं
गणित की किताबों में
.....रजनीश ( २८.१०.२०२०, बुधवार)
अच्छा क्या है
बुरा क्या है
कुछ अच्छा कभी-कभीअच्छा नहीं
कुछ बुरा कभी-कभी नहीं बुरा
किसे कहूं अच्छा
किसे कहूं बुरा
जो मेरे लिए अच्छा
वो तुम्हारे लिए बुरा
जो तुम्हारे लिए अच्छा
वो मेरे लिए बुरा
जैसे जैसे
पैमाने बदलते हैं
वैसे वैसे
अच्छे-बुरे के
मायने बदलते हैं
फिर अच्छा क्या है
फिर बुरा क्या है
ये सवाल , सवाल ही रहेगा
जब तक फैसला
तुम्हारा होगा या मेरा
जवाब मिलेगा
जब फैसला
ना तुम्हारा ना मेरा
जब फैसला
इंसानियत करेगी
क्यूंकि इंसानियत से बड़ा
कुछ भी नहीं
बुरा वहां
जहां इंसानियत मर जाए
बुरा वहीं
जहां इंसानियत हार जाए
अच्छी है वो बात
अच्छी है वो चीज
जिसमें कोई भी हारे
पर हो इंसानियत की जीत
.....रजनीश (२६.१०.२०२०, सोमवार)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....