Wednesday, April 24, 2013

कुछ यूं करके भी देख ...



















हवा में हरदम ऊंचा उड़ता  है
कभी जमीं पर चलकर देख,

फूलों का हार पहन इतराता है
कभी कांटे सर  रखकर देख,

दौलत और दावतें उड़ाता  है
कभी जूठन चखकर देख,

बस पाने की जुगत ही करता है
कभी कुछ अपना  खोकर देख,

अपनी जीत के लिए  खेलता है
कभी औरों के लिए हारकर देख,

 जो  नहीं उसके लिए ही रोता है
कभी जो संग उसके  हँसकर देख,

बस किताबें पढ़ता रहता है
कभी  चेहरों को पढ़कर देख,

औरों के रास्ते ही चलता है
कभी अपनी राह चलकर देख,

दूसरों के घर झाँकता रहता है
कभी अपने घर घुस कर देख...
......रजनीश (24.04.2013)

14 comments:

shalini rastogi said...

प्रेरणादायक कविता !

प्रवीण पाण्डेय said...

सिक्के में दोनों पहलू हों..

poonam said...

sahi baat...

ओंकारनाथ मिश्र said...

बहुत सुन्दर.

कालीपद "प्रसाद" said...

अपनों को तो बहुत आजमाए ,कभी गैरों को भी आजमाँ के देख -बहुत सुन्दर.
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Khoob Kaha.....Behtreen Panktiyan

Manav Mehta 'मन' said...

bahut badhiya

dr.mahendrag said...

दूसरों के घर झांकता रहता है,
कभी अपने घर घुस कर देख

सुन्दर, वास्तिवकता से परिचित कराती सुन्दर कविता

dr.mahendrag said...

दूसरों के घर झांकता रहता है,
कभी अपने घर घुस कर देख

सुन्दर, वास्तिवकता से परिचित कराती सुन्दर कविता

Anita said...

वाह..यह जनाब हैं कौन..शुरू में लगा राजनीतिज्ञ..पर अंत आते-आते तो कुछ अपनी सी ही बात लगी...

निरुपमा said...

यशवंत जी ने सही सोचा....मुझे पढ़ने ये पढ़ने का अवसर तो इस लिंक की वजह से ही प्राप्त हुआ....शुक्रिया ....सुन्दर रचना..

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bahut sunder

Anju (Anu) Chaudhary said...

अपने अंदर झांकने का वक्त ही किस के पास है ?????


Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता said...

nice suggestions :)

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....