Thursday, October 22, 2020

अपेक्षा

सूरज से अपेक्षा 
धूप दे पर लू नहीं

बादल से अपेक्षा 
पानी दे पर बाढ़ नहीं

हवा से अपेक्षा 
ठंडक दे पर आंधी नहीं

रास्ते से अपेक्षा 
मंजिल दे पर छाले नहीं 

धरा से अपेक्षा 
जगह दे पर भूकंप नहीं 

मित्र  से अपेक्षा 
सवाल करे  पर विरोध नहीं 

पड़ोसी से अपेक्षा
मदद करे पर मांगे नहीं 

बच्चे से अपेक्षा 
मांग करे पर रूठे नहीं 

साथी से अपेक्षा
सब सुने कुछ पूछे नहीं 

ऊपरवाले से अपेक्षा
सुख दे पर दर्द नहीं

जीवन का अंत है 
अपेक्षाओं का अंत नहीं 

......रजनीश ( २२.१०.२०२०, गुरुवार)

Friday, October 16, 2020

बचपन की यादें

बचपन की यादों में 
पिता जी की उंगलियां
जिनके सहारे चला करता था 

बचपन की यादों में 
पिता जी की गोदी 
जिसमे आराम से बैठा करता था

बचपन की यादों में
पिता जी की थाली 
जिससे निवाले लिया करता था

बचपन की यादों में 
पिता जी की सायकल 
संग जिसमें बैठ घूमा करता था

बचपन की यादों में 
पिता जी की पुस्तकें
घंटो जिन्हें में पढ़ा करता था 

बचपन की यादों में 
पिता जी का रेडियो
बड़े चाव से जिसे मैं सुना करता था

बचपन की यादों में 
पिता जी का प्यार 
जिससे अभिभूत सदा रहता था

बचपन की यादों में 
पिता जी की शाबाशी
विश्वास जिससे बढ़ा करता था 

बचपन की यादों में 
पिता जी का आशीष
धन्य जिसे पाकर हुआ करता था 

मैं बड़ा होता रहा 
पर बचपन संग चलता रहा 
बचपन की यादें जुड़ती गईं 
बचपन भी बढ़ता रहा

पिता जी का साथ 
जीवन भर छूटता ही नहीं 
पिता जी गर साथ हों 
बचपन कहीं जाता नहीं 

ना कभी बचपन खत्म होता 
ना ही बचपन की यादें 
बचपन की यादों का
कभी अंत नहीं होता 

बचपन की यादों में 
मेरी उम्र का हर पड़ाव है 
 हर उम्र में क्यूंकि 
 बच्चा ही रहा हूं मैं 
 
 ......रजनीश (१६.१०.२०२०)
         परम पूज्य पिता जी की पुण्य तिथि पर 

Thursday, October 15, 2020

वक्त बीतता गया

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जीतता गया 
कुछ भीतर रीतता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जोड़ता गया
कुछ पीछे छोड़ता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जुटाता गया 
कुछ यूं ही लुटाता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ निभाता गया 
कुछ रिश्ते भुलाता गया

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ अपनाता गया
कुछ मौके ठुकराता गया

वक्त बीतता गया
लम्हा दर लम्हा 
मैं सब को हंसाता गया 
कभी खुद को रुलाता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं जीवन की बगिया
सींचता गया 
 वक्त बीतता गया 

..... रजनीश (१५.१०.२०२०, गुरुवार)

Monday, October 12, 2020

कुछ बातें इन दिनों की


जिंदगी रुक सी गई है
कदम जम से गए हैं 
एक वायरस के आने से
कुछ  पल थम से गए हैं 

कहीं  कब्र नसीब नहीं होती
कोई रातोरात जलाया जाता है
इंसानियत  शर्मसार होती है
उसे एक खबर बनाया जाता है 

कभी होती  नहीं हैं खबरें 
बनाई  जाती हैं
कभी होती नहीं जैसी
दिखाई जाती हैं 

जिसे समझा था दुश्मन
अल्हड़ बचपन का 
बन गया  लॉकडाउन  में
वो जरिया शिक्षण का

पास आने की चाहत
 पर दूर रहने की जरूरत
 किस ने कह दिया जिंदगी से
 मुसीबतें कम हो गई हैं ?

....रजनीश (१२.१०.२०२०, सोमवार)
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