सूरज से अपेक्षा
धूप दे पर लू नहीं
बादल से अपेक्षा
पानी दे पर बाढ़ नहीं
हवा से अपेक्षा
ठंडक दे पर आंधी नहीं
रास्ते से अपेक्षा
मंजिल दे पर छाले नहीं
धरा से अपेक्षा
जगह दे पर भूकंप नहीं
मित्र से अपेक्षा
सवाल करे पर विरोध नहीं
पड़ोसी से अपेक्षा
मदद करे पर मांगे नहीं
बच्चे से अपेक्षा
मांग करे पर रूठे नहीं
साथी से अपेक्षा
सब सुने कुछ पूछे नहीं
ऊपरवाले से अपेक्षा
सुख दे पर दर्द नहीं
जीवन का अंत है
अपेक्षाओं का अंत नहीं
......रजनीश ( २२.१०.२०२०, गुरुवार)
4 comments:
और हर अपेक्षा टूटेगी ही
काश मन से अपेक्षा हो कि साक्षी रहे प्रतिक्रिया न करे
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-१०-२०२०) को 'स्नेह-रूपी जल' (चर्चा अंक- ३८६४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
आदरणीय सर,
अत्यंत सुंदर और सटीक सन्देश देती हुई कविता। सच में हम मानवों ने सब कुछ और हर किसी से अपेक्षा लगा रखी है। केवल अपने आप से अपेक्षा करना भूल जाते हैं।
बहुत सुंदर रचना के लिये हृदय से आभार व सदर नमन।
आपसे अनुरोध है कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आएं। यदि आप मेरे नाम पर क्लिक करें तो वो आपको मेरे प्रोफाइल तक ले जाएगा। वहाँ मेरे ब्लॉग के नाम काव्यतरंगिनी पर क्लिक करियेगा, आप मेरे ब्लॉग पर पहुँच जाएँगे।
वाह बहुत खूब ! मानव को हर एक से बस अपेक्षा है पर स्वयं सभी अच्छे विचारों की उपेक्षा करता है ।
बहुत सुंदर सृजन।
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