बनाया था जिन्होंने आशियाना
इकठ्ठा कर एक-एक तिनका
जोड़ कर एक-एक ईंट पसीने से
किया था कमरों को तब्दील घर में,
उसकी दहलीज़ पर बैठे वो
आज बस ताकते है आसमान में
और झुर्रियों भरी दीवारों पर लगी
अब तक ताजी पुरानी तस्वीरों से
करते हैं सवाल-जवाब बाते करते हैं ,
धमनियाँ फड़क जाती हैं अब भी
कभी तेज रहे खून के बहाव की याद में
धुंधली हो चली आँखों के आँगन में
आशा की रोशनी चमकती अब भी
कि ऐसा ही नहीं रहेगा सूना ये घरौंदा
और अपने खून से पाले हुए सपने
कुछ पल वापस आकर सुनाएँगे लोरियाँ,
आशा की रोशनी चमकती अब भी
कि सारे काँटों को बीन कर
अपने अरमानों और दीवानगी से
जो सड़क बनाई जिस अगली पीढ़ी के लिए
उनमें मे से कोई तो आएगा
हाथ पकड़ पार कराने वही सड़क ,
हर नई झुर्री से वापस झाँकता
वही पुराना समय पुराना मंजर
जब वो होते थे माँ की गोद में
और बुढ़ाती आँखों में अजब कुतूहल
जानी-पहचानी चीजों को फिर जानने का
और सदा जवान खत्म ना होता जज़्बा
काँपते लड़खड़ाते लम्हों को पूरा-पूरा जीने का ...
...रजनीश (01.10.11)
( 1 अक्तूबर , अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर )
16 comments:
सबको सम्मान, अन्त तक।
samuchit samman sabka
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
यथास्थिति से रूबरू कराती शानदार प्रस्तुति और उतने ही सुंदर विचार. काश ऐसा हो जाय.
शुभकामनायें.
बहुत अच्छी कामना - अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !
बहुत बढ़िया सुन्दर अभिव्यक्ति!!
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ..
बहुत खूब .
ओह बेबसी !
zhurriyon wale ghar ki zhurriyan intzar me badhti hi jati hai. afsos.
भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति ...
अपने बुजुर्गों का सम्मान करना हमारा धर्म है |
आपकी कविता पढकर कई झुर्री भरे चेहरे या आ गए जो आज भी इंतजार कर रहे हैं... जबकि वे जानते हैं कोई नहीं आएगा...काश!युवा अपने भविष्य के चेहरे को भी याद कर लें तो शायद इतने खुदगर्ज न हों..
behtreen prstuti...
बहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
एक दिन सबको जीवन के इस मोड़ से गुजरना है!
universal sentiment well expressed!!!
बेहतरीन...
इस विषय में अपनी एक कविता का लिंक दे रहा हूँ। मन हो तो पढ़ सकते हैं। इस कविता के भाव से जोड़ कर पढ़ेंगे तो आपको अच्छा लगेगा...
http://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2009/11/blog-post_15.html
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