Saturday, October 1, 2011

झुर्रियों का घर

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बनाया था जिन्होंने आशियाना
इकठ्ठा  कर एक-एक तिनका
जोड़ कर एक-एक ईंट पसीने से
किया था कमरों को  तब्दील घर में,
उसकी दहलीज़ पर बैठे वो
आज बस ताकते है आसमान में
और झुर्रियों भरी दीवारों पर लगी
अब तक ताजी पुरानी तस्वीरों से
करते हैं सवाल-जवाब बाते करते हैं ,
धमनियाँ फड़क जाती  हैं अब भी
कभी तेज रहे खून के बहाव की याद में 
धुंधली हो चली आँखों के आँगन में
आशा की रोशनी  चमकती  अब भी
कि ऐसा ही नहीं रहेगा सूना ये घरौंदा
और अपने खून से पाले हुए सपने
कुछ पल वापस आकर सुनाएँगे लोरियाँ,
आशा की रोशनी चमकती अब भी
कि सारे काँटों को बीन कर
अपने अरमानों और दीवानगी से
जो सड़क बनाई जिस अगली पीढ़ी के लिए
उनमें मे से कोई तो आएगा
हाथ पकड़ पार कराने वही सड़क ,
हर नई झुर्री से वापस झाँकता
वही पुराना समय पुराना मंजर
जब वो होते थे माँ की गोद में
और बुढ़ाती आँखों में अजब कुतूहल
जानी-पहचानी चीजों को फिर जानने  का
और सदा जवान खत्म ना होता जज़्बा
काँपते लड़खड़ाते लम्हों को पूरा-पूरा  जीने का ...
...रजनीश (01.10.11)
( 1 अक्तूबर , अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर )

16 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सबको सम्मान, अन्त तक।

रश्मि प्रभा... said...

samuchit samman sabka

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

रचना दीक्षित said...

यथास्थिति से रूबरू कराती शानदार प्रस्तुति और उतने ही सुंदर विचार. काश ऐसा हो जाय.

शुभकामनायें.

Dr Varsha Singh said...

बहुत अच्छी कामना - अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया सुन्दर अभिव्यक्ति!!

रेखा said...

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ..

Kunwar Kusumesh said...

बहुत खूब .

Arvind Mishra said...

ओह बेबसी !

अनामिका की सदायें ...... said...

zhurriyon wale ghar ki zhurriyan intzar me badhti hi jati hai. afsos.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

भावपूर्ण मार्मिक प्रस्तुति ...
अपने बुजुर्गों का सम्मान करना हमारा धर्म है |

Anita said...

आपकी कविता पढकर कई झुर्री भरे चेहरे या आ गए जो आज भी इंतजार कर रहे हैं... जबकि वे जानते हैं कोई नहीं आएगा...काश!युवा अपने भविष्य के चेहरे को भी याद कर लें तो शायद इतने खुदगर्ज न हों..

सागर said...

behtreen prstuti...

Kailash Sharma said...

बहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

अनुपमा पाठक said...

एक दिन सबको जीवन के इस मोड़ से गुजरना है!
universal sentiment well expressed!!!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बेहतरीन...
इस विषय में अपनी एक कविता का लिंक दे रहा हूँ। मन हो तो पढ़ सकते हैं। इस कविता के भाव से जोड़ कर पढ़ेंगे तो आपको अच्छा लगेगा...
http://devendra-bechainaatma.blogspot.com/2009/11/blog-post_15.html

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