Saturday, March 31, 2012

गुलाबजल (पुनः)

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(मेरी एक साल पुरानी कविता एक बार फिर से पोस्ट कर रहा हूँ )
आओ
बताऊँ  एक बात तुम्हें ,
मुझे तलाशते
जब तुम्हारी आँखों में गड़ता है कोई प्रश्नचिन्ह
कुछ धुंधला सा देखते हो ,
मैं कुछ शब्दों का गुलाबजल
बना कर लगा देता हूँ तुम्हारी आँखों में
मेरी झोली में शब्द हैं गिने-चुने
नतीजतन कुछ सवाल शब्दों में ही फंस जाते है
फिर शब्दों के चेहरे बदल कर पेश करता हूँ
कि थोड़ी और ठंडक पहुंचे
तुम्हारी आँखों को और
शब्द सफल हो जाएँ ,
पाँच अक्षरों की खूबसूरती को
बना  देता हूँ दो अक्षर का चाँद,
पर साथ घुस आता है 
दो शब्दों का दाग,
कैसे समेटूँ
सब कुछ तुम्हारे लिए..
कुछ शब्दों के मटके और
अविरल बहता जल,
इसलिए बेहतर होगा तुम आंखे बंद कर लो
महसूस करो ये प्रवाह ,
और एक स्पर्श में 
पूरा अभिव्यक्त हो जाऊंगा मैं  ...
...रजनीश ( 30.03.11)

Saturday, March 24, 2012

पलाश .. एक बार फिर


पलाश
इस साल भी
दिख जाते हैं
हर रोज बिलकुल वहीं
जहां वो थे पिछले साल भी
बिलकुल वही रंग
पर मेरी आँखों पर
कोई पर्दा है
नज़र खोई रहती है कहीं

पलाश के फूलों
की पुकार भी
टकराती हैं आकर
 झकझोरती हैं
मुझे कई बार
पर मैं अनसुनी कर
चलता ही रहता हूँ
गूंजता रहता है
एक नया शोर भीतर

इस साल
चाल भी मेरी
कुछ बदली सी है
एक बार रुका भी
मैं पलाश के सामने
वो एक धुंधली मीठी याद सा
मेरे सामने कहता रहा
पहचानो मुझे ...!

मैं पलटता रहा
यादों के पन्ने
और किताब में
दबे एक पुराने फूल
से पहचाना उसे
बस कुछ पल ही रुके थे
मेरे कदम
उसके करीब और
वक़्त फिर खींच
ले गया मुझे

पिछले साल ही
पलाश को देखते-देखते
रास्ता  गुम जाता था
और अब मैं ही
गुम गया हूँ
रास्ते में ..
.......रजनीश (24.03.12)

Sunday, March 18, 2012

कुछ दिल की ...कुछ रंगों की

छूट गए हर चेहरे से 
रंग होली के,
कुछ तो
यूं ही उतर गए
और कुछ रंगों को
देखा उतारते जबरन,
होली के कपड़े
रख दिये सबने
एक कोने में
साथ ही उस पर लगे
रंगों को भी दे दी
साल भर की कैद,

पर अब भी 
उतरी नहीं मेरी होली,
सब के संग
नाचने गाने और
मस्ती में सराबोर होने
का मन अब भी करता है
दिल के एक कोने में
गूँजती है फाग अब भी ,

सड़क पे भी
ज़िंदगी की आवाजाही
ने चंद दिनों में ही
मिटा दिये
होली के सब निशान,
हवा में भी
अब खुमार नहीं होली का
नहीं दिखता अब कोई
गले लगता और खिलखिलाता,
रंग लिए फिरता हूँ
पर कोई नहीं मिलता
जो बाहें फैलाए
अपने गाल आगे कर दे,
मैं रंगों को हवा में
उछाल कर खुद ही नहाता हूँ
और भटकता हूँ गली-गली
कि मिल जाए
कोई पागल मुझसा....
......रजनीश (17.03.11)

Wednesday, March 7, 2012

आई होली है

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आई होली है...
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रंगों में रंग
चढ़ा मौसम की भंग
लिए दिल में तरंग
आई होली है..

उड़े रंग और गुलाल
बचे ना कोई गाल
हर गली में धमाल
आई होली है..

उठी मन मे उमंग
थिरके सब संग
अब काहे की जंग
आई होली है..

गाओ खुशियों के गीत
सुनो सुंदर संगीत
उठी मन में है प्रीत
आई होली है..

बजे ढ़ोल मृदंग
कोई दिल न हो तंग
चलो मस्ती के ढंग
आई होली है..

लग जाओ गले 
कैसे शिकवे गिले 
दिल से दिल हैं मिले 
आई होली है.. 

रंगा तू मेरे रंग 
रंगा मैं तेरे रंग 
रंग खेलें सब संग 
आई होली है ...
....रजनीश (07.03.2012)
होली पर

आप सभी को  होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ....

Saturday, March 3, 2012

प्रेम के कुछ सिद्धांत

करती है हर चीज़
अपनी अवस्था में
रहने का प्रयास
कोशिश वजूद बनाए रखने की
प्रेम में रहने से हृदय प्रेममय ही रहेगा

होती है चलने की गति
लगते हुए बल की समानुपाती
जितनी होगी ढलान
उतना ही तेज उतरती गाड़ी
अपनापन बढ़ाओ प्रेम भी बढ़ेगा

ऊर्जा अमर है
उसका मान है स्थिर
कर नहीं सकते उसे
ख़त्म या पैदा ...
बस बदल सकता है उसका रूप
घृणा कम करो प्रेम का दायरा बढ़ेगा

धकेलने से सरल होता है खींचना
दूर करने से आसान है पास लाना
प्रेम देने से बड़ा है
प्रेम स्वीकार करना
प्रेम ग्रहण करने से प्रेम बढ़ेगा
......रजनीश (03.03.2012) 
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