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Sunday, September 30, 2018

कुछ आदतें



वो आए खयालों में
तब भी दूरियाँ बनाए  रखीं
और हम आगवानी  के लिए
अपना घर संवारने लगे 

दिल की आदत सी
बन गई है मसरूफियत
कुछ और नहीं मिला
तो सुकून तलाशने लगे

तय तो यही किया था
नहीं करेंगे कभी याद उन्हें
पर तन्हाई ने सताया
तो उन्हें ही पुकारने लगे

.. रजनीश (30.09.18)

Sunday, April 8, 2012

कुछ पलों के लिए

अनायास ही कुछ बूंदें आसमान से आकर
जमीन पर गिर पड़ीं
नीम दर्द से तपती जमीं पर
थोड़ी ठंडक छोड़ती
भाप बनती बूंदें
कुछ पलों के लिए

धूल का गुबार
थम सा गया था
और भाप होती बूंदों
के बचे हिस्सों ने उढ़ा दी थी
एक चादर जमीं पर
कुछ पलों के लिए

ठंडी हवा के झोंके में
जमीं का दर्द घुलकर
गुम गया था
मैं चल रहा था
हौले -हौले सम्हल सम्हल
ताकि जमीं रह सके इस सुकून में
कुछ पलों के लिए

फिर भी  उभर आए
मेरे पैरों के निशान
और धीरे धीरे
फिर धूल आने  लगी ऊपर
दब गई थी धूल
बस कुछ पलों के लिए

जैसे कोई बूढ़ा दर्द
थम गया हो
बरसों से जागती
आँखों में आकर बस गई हो नींद
एक उजाड़ से सूखे बगीचे में
खिल गया हो एक फूल
कुछ पलों के लिए

कुछ पलों का सुकून
कुछ पलों की बूँदाबाँदी
जलन खत्म नहीं करती
पर एहसास दिला जाती है
वक्त एक सा नहीं रहता
वक्त बदलता है
बुझ जाती है प्यास
बरसते हैं बादल  
साल दर साल
पर वक़्त नहीं आता
अपने वक़्त से पहले
................रजनीश (08.04.2012)
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