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Thursday, February 17, 2011

दृष्टिभ्रम

mysnaps_diwali 161
कंपकंपाते होठों पर 
अटके से थे शब्द कुछ ...
हवा से हिलते केश में,
ढँका मानो आमंत्रण...
कांपते हाथों में,
फंसी थी एक पाती...
झुकी पलकों में ,
छुपा सा लगा समर्पण ...
उकेरता था पाँव, कुछ वृत्त ,
उसने, लगा सब कुछ कहा था ,
पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ....
हाथ में उसके सिर्फ एक नज़्म थी,
जिसमें कुछ नहीं बस अलविदा लिखा था...
...............रजनीश (16.02.2011)
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