इस दिन ना हो चाकरी, ना हो कोई काम I
संडे के दिन बैठ कर, घर पर करो आराम II1II
खटते थकपक जात हैं, निकल जात है तेल II2II
संडे कब हैं पूछते, हो जाते हैं बेहोश II3II
हर हफ्ते में एक बार, पल आनंद का आय I
संडे आंखे खोल जब, नज़र अख़बार पे जाय II4II
ना होती है झिक-झिक, ना मिलता है जाम II5II
काहे का है संडे, इस दिन काहे का त्योहार ।
जब घर के सारे काम मिल, करते हों इंतजार II6II
छह दिन घर के काम को, रहते संडे पर टाल
संडे में हालत बुरी , हो जाते है बेहाल II7II
किस्मत वालों को मिला, “शनि-रवि” का मज़ा
किसी का संडे-मंडे एक है , हर दिन एक ही सज़ा II8II
मैं होता तेरी जगह, हफ्ते में रख देता दो-चार II9II
...... रजनीश (28.04.2013)
संडे अर्थात रविवार पर