Friday, February 27, 2015

राह-ए-इश्क


राह-ए-इश्क में क्यूँ गमों की भीड़ सताती है
हो कितनी ही काली रात सुबह जरूर आती है

बाग-ए-बहार दूर सही गमोसितम की महफ़िल से
फूलों की महक भला काँटों से कहाँ रुक पाती है

मंज़िलें खो जाने पर कहाँ ख़त्म होता है सफ़र
गुम हो रही राह से भी एक राह निकल आती है

फिक्र नहीं गम-ओ-दर्द का बसेरा मिलता है हर राह
कड़ी धूप हो या बारिश एक छांव तो मिल जाती है  

राह-ए-इश्क में लुटा खुद को सारी खुशियाँ लुटा दो
गमों  के साये गुम जाते हैं हर खुशी लौट आती है  

........रजनीश (27.02.15)

Thursday, February 19, 2015

रोशनी और अंधेरा



रोशनी कर तो ली मैंने अंधेरा भी गुम हो गया
पर चिराग की जुगत में रस्ता ही गुम हो गया

अंधेरे में थी ना बात कि चरागों को बुझा सके
पर हवा का झोंका साजिश में शामिल हो गया

अंधेरा न आया कहीं से न गया ही था कहीं  
जला बस इक चिराग माहौल रोशन हो गया

रही संग उसके रोशनी जब तक जला चिराग
थक कर क्या रुका वो अंधेरे में खो गया 

रोशनी का समंदर  अंधेरे को डुबा न सका 
जाने कहाँ जलते चरागों का  दम खो गया

बढ़ते कदमों को रोकने का दम अँधेरों में कहाँ
जब सफर बुलंद हौसलों से रोशन हो गया 

अजब सी बात रोशनी में हम तुम ज़ुदा ज़ुदा
पर बंद आँखों से जब देखा मैं तुम हो गया
.....रजनीश (19.02.15)

Saturday, February 14, 2015

प्रेम


प्रेम रूप, प्रेम रंग
प्रेम रोग, प्रेम राग
प्रेम गीत, प्रेम धुन
प्रेम मंत्र , प्रेम राह

प्रेम पुष्प, प्रेम बगिया
प्रेम मंदिर, प्रेम पूजा
प्रेम धन, प्रेम गहना
प्रेम नाता, प्रेम रिश्ता

प्रेम प्यास, प्रेम आस
प्रेम खास, प्रेम पास
प्रेम बादल, प्रेम वर्षा
प्रेम सागर, प्रेम धारा

प्रेम नदिया, प्रेम कुटिया
प्रेम नगरी, प्रेम दुनिया
प्रेम धरती, प्रेम अंबर
प्रेम इंसान, प्रेम ईश्वर

....रजनीश ( 14.02.15)

Thursday, February 5, 2015

हसरतें



इक रास्ता जो था मिला, इक रास्ते में खो गया
इक सपना जो था दिखा, इक सपने में खो गया

प्यार की बगिया लगाने, बनाई थीं कुछ क्यारियाँ
बीज नफ़रत के न जाने, कौन उनमें बो गया

कुछ रेत ही मिल सकी, बनाया था इक आशियाँ
वो किनारा भी मेरा , समंदर का पानी धो गया

उसकी ख़िदमत की बड़ी हसरत से की तैयारियां
कहाँ रुकना था उसे बस ये आया और वो गया

सोचा था चलो एक चाँद है संग ऊपर आसमां
देखने बैठा था उसे , वो बादलों में खो गया

………..रजनीश (05.02.15)

Monday, February 2, 2015

ख़्वाहिश


मिल जाती जो नज़रें होती मुलाक़ात की ख़्वाहिश
हो जाती गर मुलाक़ात होती है बात की ख़्वाहिश

हो जाता है शामिल रस्में तोड़ने वालों में मौसम
जब बारिश में धूप और होती है ठंड में बारिश

मांग लेते हम भी वही गर दूसरे दर्द नहीं होते
रह जाती है फेहरिस्त में नीचे चाहत की गुजारिश

मिल जाती कामयाबी कुछ हम भी बन जाते  
रह जाती कसर थोड़ी अपनी कौन करे सिफ़ारिश

करते हैं कोशिश कि बढ़ते किसी सफ़र पर कदम
हो जाती है फिर शुरू हमारे सपनों की साज़िश

...........रजनीश (02.02.15)
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