तुमने
कहा था,
कि जो चाँद उस रात ,
तारों की चादर ओढ़े ,
तुम्हारी खिड़की पर आके बैठा था,
उसमें एक पत्थर पे
खुदा मेरा नाम,
तुम पढ़ ना सके थे ...
पर मुझे उस पत्थर के करीब ,
धूल में बसे
तुम्हारे कदमों के निशान,
अब भी दिखते हैं ...
वो चाँद ,
मेरी खिड़की पर भी आता है, अक्सर ...
....रजनीश (05.03.2011)