Tuesday, May 30, 2017

वक्त-वक्त की बात है

वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त खोया कभी वक्त पाया
कभी वक्त ज्यादा कभी वक्त कम
वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त भूला कभी उसे भुलाया
कभी जोश ज्यादा कभी होश गुम
वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त रूठा कभी वक्त गाया
कभी हंसी गूँजी कभी आंख नम
वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त छूटा कभी लौट आया
कभी वक्त आगे कभी आगे हम
वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त भारी कभी वक्त भाया
कभी वक्त हारा कभी हारे हम
वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त साथी कभी वक्त ने मारा
कभी जान आयी कभी निकला दम
वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त ने रोका कभी हमें  भगाया
कभी नमक ज्यादा कभी चीनी कम
वक्त-वक्त की बात है
कभी वक्त रोया कभी वक्त रुलाया
कभी तुम हमारे  कभी अपना गम
वक्त-वक्त की बात है
हम वही हैं तुम वही हो
बस दिन कभी , कभी रात है
वक्त-वक्त की बात है,  वक्त-वक्त की बात है
                                             .....................रजनीश (30/05/17)

Sunday, May 28, 2017

एक उलझन

कविता के लिए वक्त निकालना
आपाधापी भरी जिंदगी में
कुछ पल अपने लिए तलाशना है
कविता एक चाहत है ,
अनुभूतियों को आयाम देना ,
शब्दों से खेलना और बातें करना है
पर और भी बहुत कुछ है
करने के लिए जिंदगी में
वक्त कम और चाहतें ज्यादा
कविता केवल अपनी डायरी तो नहीं
कि जो महसूस किया
जहाँ से गुजरा
जिस पल को जिया
बस लिख दिया
जो मैं जी रहा हूँ, जिंदगी सिर्फ वही तो नहीं
पल एक पर अनुभूतियाँ असंख्य
कविता मे उन्हें भी तो उकेरना है
याने ये लम्बी फेरहिस्त मे जुडा
एक और काम
फिर कविता कहाँ रह जाती है अपने लिए
और फुरसत के पलों में जज़्बातो के साथ जूझना
कहाँ सुकून दे सकता है
कविता लिखना भी एक संघर्ष से कम नहीं
रजनीश (28/05/17)
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