एक हथेली पर
रखे हुए कई बरसों से
ज्यादा भारी हो जाता है
कभी कभी
दूसरी हथेली पर रखा
एक पल
पैरों से टकराते
अथाह सागर से
बड़ी हो जाती है
कभी कभी
अपने भीतर महासागर लिए
कोने से छलक़ती
...एक बूंद
खुले आकाश में
भरी संभावनाओं सी
अनंत हवा से
कीमती हो जाती है
कभी कभी
जीवन की छोटी सी
...एक सांस
बड़े-बड़े
दरख्तों की छांव से
ज्यादा सुकून देता है
कभी कभी
छोटा सा
...एक आँचल
आसमान छूते बड़े
सुनहरे महलों से
ज्यादा जगह लिए होता है
कभी कभी
मुट्ठी बराबर
...एक दिल
ज़िंदगी की बड़ी
उलझन भरी बातों से
बड़ी हो जाती है
कभी कभी
छोटी सी
...एक बात
....रजनीश (19.04.15)
अनायास ही कुछ बूंदें आसमान से आकर
जमीन पर गिर पड़ीं
नीम दर्द से तपती जमीं पर
थोड़ी ठंडक छोड़ती
भाप बनती बूंदें
कुछ पलों के लिए
धूल का गुबार
थम सा गया था
और भाप होती बूंदों
के बचे हिस्सों ने उढ़ा दी थी
एक चादर जमीं पर
कुछ पलों के लिए
ठंडी हवा के झोंके में
जमीं का दर्द घुलकर
गुम गया था
मैं चल रहा था
हौले -हौले सम्हल सम्हल
ताकि जमीं रह सके इस सुकून में
कुछ पलों के लिए
फिर भी उभर आए
मेरे पैरों के निशान
और धीरे धीरे
फिर धूल आने लगी ऊपर
दब गई थी धूल
बस कुछ पलों के लिए
जैसे कोई बूढ़ा दर्द
थम गया हो
बरसों से जागती
आँखों में आकर बस गई हो नींद
एक उजाड़ से सूखे बगीचे में
खिल गया हो एक फूल
कुछ पलों के लिए
कुछ पलों का सुकून
कुछ पलों की बूँदाबाँदी
जलन खत्म नहीं करती
पर एहसास दिला जाती है
वक्त एक सा नहीं रहता
वक्त बदलता है
बुझ जाती है प्यास
बरसते हैं बादल
साल दर साल
पर वक़्त नहीं आता
अपने वक़्त से पहले
................रजनीश (08.04.2012)
ओस की इक बूंद
जमकर घास पर,
सुबह -सुबह
मोती हो गई,
ठंड की चादर ने
दिया था उसे ठहराव
कुछ पलों का,
फिर वो बूंद
सूरज की किरणों
पर बैठ उड़ गई,
छोड़कर घास की हथेली पर
एक मीठा अहसास
कह अलविदा
हवा में खो गई,
कुछ पलों का जीवन
और दिल पर ताजगी भरी
नमकीन अमिट छाप
एक बूंद छोड़ गई ...
घास पर उंगली फिरा
महसूस करता हूँ
उस बूंद का वजूद
जो भाप हो गई ...
...............................
एक बूंद में होता है सागर
बूंदों से दरिया बनता है
बूंदों से बनती है बरखा
बूंद - बूंद शहद बनता है
भरा होता है एक बूंद में
दर्द जमाने भर का
इकट्ठी होती है खुशी बूंद-बूंद
बूंद बूंद शराब बनती है
प्यार की इक बूंद का नशा उतरता नहीं
इक बूंद सर से पैर भिगो देती है
कहानी ख़त्म कर देती है एक बूंद
एक बूंद ज़िंदगी बना देती है
...
बूंद-बूंद चखो जाम ज़िंदगी का
बूंद-बूंद जियो ज़िंदगी ....
...रजनीश (12.01.2012)
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