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Sunday, April 19, 2015

छोटी सी बात


एक हथेली पर
रखे हुए कई बरसों से
ज्यादा भारी हो जाता है
कभी कभी
दूसरी हथेली पर रखा
एक पल

पैरों से टकराते
अथाह सागर से
बड़ी हो जाती है
कभी कभी
अपने भीतर महासागर लिए
कोने से छलक़ती
...एक बूंद

खुले आकाश में
भरी संभावनाओं सी
अनंत हवा से
कीमती हो जाती है
कभी कभी
जीवन की छोटी सी
...एक सांस

बड़े-बड़े
दरख्तों की छांव से
ज्यादा सुकून देता है
कभी कभी
छोटा सा
...एक आँचल

आसमान छूते बड़े
सुनहरे महलों से
ज्यादा जगह लिए होता है
कभी कभी
मुट्ठी बराबर
...एक दिल

ज़िंदगी की बड़ी
उलझन भरी बातों से
बड़ी हो जाती है
कभी कभी
छोटी सी
...एक बात
....रजनीश (19.04.15)

Sunday, April 8, 2012

कुछ पलों के लिए

अनायास ही कुछ बूंदें आसमान से आकर
जमीन पर गिर पड़ीं
नीम दर्द से तपती जमीं पर
थोड़ी ठंडक छोड़ती
भाप बनती बूंदें
कुछ पलों के लिए

धूल का गुबार
थम सा गया था
और भाप होती बूंदों
के बचे हिस्सों ने उढ़ा दी थी
एक चादर जमीं पर
कुछ पलों के लिए

ठंडी हवा के झोंके में
जमीं का दर्द घुलकर
गुम गया था
मैं चल रहा था
हौले -हौले सम्हल सम्हल
ताकि जमीं रह सके इस सुकून में
कुछ पलों के लिए

फिर भी  उभर आए
मेरे पैरों के निशान
और धीरे धीरे
फिर धूल आने  लगी ऊपर
दब गई थी धूल
बस कुछ पलों के लिए

जैसे कोई बूढ़ा दर्द
थम गया हो
बरसों से जागती
आँखों में आकर बस गई हो नींद
एक उजाड़ से सूखे बगीचे में
खिल गया हो एक फूल
कुछ पलों के लिए

कुछ पलों का सुकून
कुछ पलों की बूँदाबाँदी
जलन खत्म नहीं करती
पर एहसास दिला जाती है
वक्त एक सा नहीं रहता
वक्त बदलता है
बुझ जाती है प्यास
बरसते हैं बादल  
साल दर साल
पर वक़्त नहीं आता
अपने वक़्त से पहले
................रजनीश (08.04.2012)

Friday, January 13, 2012

एक बूंद


ओस की इक बूंद 
जमकर घास पर, 
सुबह -सुबह 
मोती हो गई,  

ठंड की चादर ने 
दिया था उसे ठहराव 
कुछ पलों का, 
 फिर वो बूंद
सूरज की किरणों 
पर बैठ उड़ गई, 

छोड़कर घास की हथेली पर
एक मीठा अहसास
कह अलविदा 
 हवा में खो गई,

कुछ पलों का जीवन 
और दिल पर ताजगी भरी 
नमकीन अमिट छाप 
 एक बूंद छोड़ गई ...

घास पर उंगली फिरा 
महसूस करता हूँ 
उस बूंद का वजूद
जो भाप हो गई ...
...............................

एक बूंद में होता है सागर 
बूंदों से  दरिया बनता है 
बूंदों से बनती है बरखा
बूंद - बूंद शहद बनता है 
  
भरा होता है एक बूंद में  
दर्द जमाने भर का 
इकट्ठी होती  है खुशी बूंद-बूंद 
बूंद बूंद शराब बनती है 

प्यार की इक बूंद का नशा उतरता नहीं
इक बूंद सर से पैर भिगो देती है 
कहानी ख़त्म कर देती  है एक बूंद
एक बूंद ज़िंदगी बना देती है 
...
बूंद-बूंद चखो जाम ज़िंदगी का 
बूंद-बूंद जियो ज़िंदगी ....
...रजनीश (12.01.2012)

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