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Saturday, February 14, 2015

प्रेम


प्रेम रूप, प्रेम रंग
प्रेम रोग, प्रेम राग
प्रेम गीत, प्रेम धुन
प्रेम मंत्र , प्रेम राह

प्रेम पुष्प, प्रेम बगिया
प्रेम मंदिर, प्रेम पूजा
प्रेम धन, प्रेम गहना
प्रेम नाता, प्रेम रिश्ता

प्रेम प्यास, प्रेम आस
प्रेम खास, प्रेम पास
प्रेम बादल, प्रेम वर्षा
प्रेम सागर, प्रेम धारा

प्रेम नदिया, प्रेम कुटिया
प्रेम नगरी, प्रेम दुनिया
प्रेम धरती, प्रेम अंबर
प्रेम इंसान, प्रेम ईश्वर

....रजनीश ( 14.02.15)

Thursday, January 1, 2015

नया वर्ष नई कविता

.















नए वर्ष में नई उमंगे
नए गीत नई खुशियाँ बरसे
नई मंज़िलें नए रास्ते
कदम कदम मन सबका हरसे

सपने हो जाएँ साकार
सफलता के नव द्वार खुलें
मिट जाए अंधकार
चहुं ओर प्रेम के दीप जलें

नए वर्ष में नए तराने
सभी हृदय एक ताल में थिरकें
गुनगुनाएँ खुशियों के गाने
बढ़े चलें सब साथ में मिलके

आशाओं को दें जीवन
पाएँ रिश्तों में ऊँचाइयाँ मिलके
जो बीत गई सो बात गई
जो खोया उससे सीखें मिलके

नए बर्ष में नई उमंगे
नए गीत नई खुशियाँ बरसे
नया जोश और नई तरंगे
कोई हृदय ना प्यासा तरसे ....
..... रजनीश (01.01.2015)
नववर्ष 2015 की हार्दिक शुभकामनाएँ ....

Wednesday, March 13, 2013

झूठे सपनों के पार

















है सूरज निकल पूरब से
 जाता हर रोज़ पश्चिम की ओर
पानी लिए नदियां हर पल
हैं मिलती रहती सागर में

बादल बरस बरस कर
करते रहते हैं वापस
जो धरती से लिया,
हर साल हरी हरी चादरें
ढँक लेती है धरती को इक बार
एक नृत्य हर वक्त
चलता रहता है
संगीत की लहरों पर

बदलते रहते हैं पत्ते
और बदलते पेड़ भी
देखती हैं बदलती फसलों को
खेत की मेड़ भी
ज़िंदगी हर पल लेती  सांस
फूटती कोपलों, पेड़ की डालों में
घोसलों, माँदों में पनपती असल ज़िंदगी
ना है ख्वाबों ना ख़यालों में

सब कुछ कितना नियत
कितना सरल
एक रंग बिरंगा चक्र
पर नहीं जाती मिट्टी की खुशबू
बंद नहीं होता चहकना
बंद नहीं होती पानी की कलकल
बंद नहीं होता पत्तों का हवा संग उड़ना
नहीं फीका पड़ता और
नहीं बदलता कोई भी रंग
सब कुछ वैसा ही खूबसूरत
रहा आता है समय की परतों में

पर  अंदर इस संसार के
है  संसार  और एक
बहुत अजीब और बहुत ही गरीब
जहां रुक जाया करता है  सूरज
सुबह नहीं होती कभी कभी
और कभी बहुत जल्दी आ जाती है शाम
जहां सावन में भी हो जाता है पतझड़
जहां दिन के उजाले में भी अक्सर
नहीं धुल पाता रात का अंधेरा
जहां नृत्य में भी बस जाता है शोक
जहां से  नज़र नहीं आता आँखों को
कायनात का खूबसूरत खेल
जहां नहीं सब कुछ सरल और सीधा
जहां है बहुत कुछ बनावटी
जहां बदरंग लगते नज़ारे
जहां गीत नहीं देता राहत

अजीब सी बात है
जब भी इस झूठी चहारदीवारी
को लांघने की कोशिश करता हूँ
कभी खुद लौट जाते हैं पैर
कभी कोई पकड़कर
खींच लेता है वापस
और मैं खड़ा  इस गरीब
और झूठे संसार से
झांक-झांक बाहर
यही सोचता हुआ हैरान हूँ
कि टूट क्यूँ नहीं जाती
ये मोटी-मोटी दीवारें
ताकि सामने के उस असली संसार से
महक लिए ठंडी मंद बयार
मुझ तक भी आ पहुँचती
और हर सुबह सुबह ही होती
और हर शाम होती एक शाम ...
रजनीश (13.03.2013)  

Wednesday, March 7, 2012

आई होली है

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आई होली है...
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रंगों में रंग
चढ़ा मौसम की भंग
लिए दिल में तरंग
आई होली है..

उड़े रंग और गुलाल
बचे ना कोई गाल
हर गली में धमाल
आई होली है..

उठी मन मे उमंग
थिरके सब संग
अब काहे की जंग
आई होली है..

गाओ खुशियों के गीत
सुनो सुंदर संगीत
उठी मन में है प्रीत
आई होली है..

बजे ढ़ोल मृदंग
कोई दिल न हो तंग
चलो मस्ती के ढंग
आई होली है..

लग जाओ गले 
कैसे शिकवे गिले 
दिल से दिल हैं मिले 
आई होली है.. 

रंगा तू मेरे रंग 
रंगा मैं तेरे रंग 
रंग खेलें सब संग 
आई होली है ...
....रजनीश (07.03.2012)
होली पर

आप सभी को  होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ....
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....