Sunday, September 30, 2018

कुछ आदतें



वो आए खयालों में
तब भी दूरियाँ बनाए  रखीं
और हम आगवानी  के लिए
अपना घर संवारने लगे 

दिल की आदत सी
बन गई है मसरूफियत
कुछ और नहीं मिला
तो सुकून तलाशने लगे

तय तो यही किया था
नहीं करेंगे कभी याद उन्हें
पर तन्हाई ने सताया
तो उन्हें ही पुकारने लगे

.. रजनीश (30.09.18)

Wednesday, September 26, 2018

जो बीत गया


जो बीत गया
सो बीत गया

कुछ खर्च किया
कुछ जोड़ लिया
कुछ रीत गया

कुछ सीख मिली
कुछ हार मिली
कुछ जीत गया

जो बीत गया
सो बीत गया

कभी साथ मिला
कहीं प्रीत मिली
कभी मीत गया

कोई गले मिला
कोई दूर रहा
कोई पीट गया

जो बीत गया
सो बीत गया

कहीं खुशी मिली
कभी रो लिया
कभी खीझ गया

कुछ बुरा रहा
कुछ अच्छा था
कुछ ठीक गया

जो बीत गया
सो बीत गया
...रजनीश (26.09.18)

Wednesday, September 5, 2018

शिक्षक

अब तक जो इंसान ने सीखा
हमें सिखाता है शिक्षक

राह बेहतर हो जाने की
हमें दिखाता है शिक्षक

साक्षर हमें बनाता
देता नया नजरिया शिक्षक

कुछ कर सकने को विद्या में
पारंगत करता है शिक्षक

विद्यादान महादान है
सबसे ऊंचा शिक्षक

करता समाज की सेवा
समाज को यश दिलाता है शिक्षक..

...रजनीश (05.09.18)
शिक्षक दिवस पर

Sunday, August 5, 2018

बारिश और टीवी

टीवी स्क्रीन पर
बार बार आ रहा है
ये मैसेज
देखिए कहीं बारिश
तो नहीं हो रही
आपके टीवी को सिग्नल
नहीं मिल रहा

बारिश के मौसम में
हर दिन की ये कहानी है
बिना टीवी के
सुबहो शाम अब बितानी है

स्क्रीन को ताकता  हूँ
इधर उधर से झांकता हूँ
कोई चित्र ही नही
कोई समाचार नही
कोई खबर नहीं
कोई बाजार नहीं

टीवी पर कुछ
दिखता ही नहीं
न घटना न दुर्घटना
न मरना न कटना
न झगड़ा न लड़ाई
न सास न भौजाई

आदत सी थी
हल्ले गुल्ले की
देखकर ये सब
भेजा घूम जाता था
नी तकलीफों से परेशान
और परेशान हो जाता था

देखता था ये सब
लगता है
थोड़े से सुकून के लिए
कि बाहर भी बड़ा गम है
नहीं गम सिर्फ मेरे लिए

अब हर रोज की बारिश का
असर नजर आ रहा है
घर पर शोर की जगह
शांति ने ले ली है
टीवी बंद रहता है
और  अब तो मजा आ रहा है
पहले दर्द बढ़ता जाता था
अब सुकून आ जाता है
जो टीवी पर जाया हो जाता था
वो वक्त काम आ जाता है

यूं ही होती रहे बारिश
ताकि टीवी बंद रहे
बुद्धू बक्से की रहे छुट्टी
घर में कुछ सुकून रहे

...रजनीश(05.08.18)

Friday, August 3, 2018

अच्छा-बुरा

हर वक्त चुप रहने से कुछ कह देना ही अच्छा
सिर्फ कहने को कुछ कहने से चुप रहना ही अचछा

सही वक्त के इंतजार में चला जाता है सारा वक्त
इंतजार करते रहने से तो चल निकलना अच्छा

हर वक्त भागमभाग है बैचेनी और बदहवासी
रुक के कुछ पल साथ खुद के बैठ लेना अच्छा

दिल का गाना बेसुरा नहीं जज्बात में डूबा होता है
घबराकर रुक जाने से तो गुनगुना लेना अच्छा

सच को सच सच कहना नामुमकिन तो नहीं मगर
सच बस कड़वाहट लाए तब झूठ बोलना अच्छा

                                        ...रजनीश (03.08.18)

Tuesday, July 24, 2018

सीधी सच्ची बातें

है चाहत बहुत जरूरी एक रिश्ता बनाने में
भूलना चाहत का जरूरी एक रिश्ता निभाने में

यूँ तो चुनी थी डगर सीधी सी ही मैंने मगर
आ गये मोड़ कहाँ से इतने मेरे फसाने में

रिश्ते बन गए समझौते जज्बात हैं आँखें मींचे
बढ़े शोरगुल और तन्हाई तरक्कीयाफ्ता जमाने में

खट्टी मीठी कुछ  यादें पूरे और टूटने सपने
रिश्तों के ताने बाने कितना कुछ मेरे खजाने में

उनकी हर बात से इत्तेफाक है आदत हमारी
वर्ना दम ही कहाँ था उनके इस नये बहाने में

हरदम मैं अपने साथ खुद को लिए चलता हूँ
इसीलिए डरता ही नहीं कभी भी मैं वीराने में

कितना है किसे नशा क्यूँ इसकी रखूं खबर
उतनी में ही झूमता हूँ  मैं जितनी मेरे पैमाने में

                                             ......रजनीश  (24.07.18)

Sunday, June 17, 2018

पिता

पिता वृक्ष
पिता पालक
पिता मित्र
पिता  समर्थक
पिता दाता 
पिता आलोचक
पिता माझी 
पिता शिक्षक
पिता सारथी
पिता रक्षक
पिता ईश्वर
पिता जनक

                   ...On father's Day
                   ...रजनीश (17.06.18)

Wednesday, June 13, 2018

बारिश

बारिश तब भी होती थी
बारिश अब भी होती है

पहले बारिश के खयाल से ही
भीग जाया करते थे
अब ऐसे हो गए हैं
कि बूंदें फिसल जाती हैं बदन से
दिल सूखा रह जाता है

बारिश तब भी होती थी
बारिश अब भी होती है

एक वक्त था जब
गिरती बूंदों को गले लगाने
बादलों के पीछे भागते थे
अब घर में कैद हो
करते हैं  इंतजार
बादलोँ  के  बरस जाने का

बारिश तब भी होती थी
बारिश अब भी होती है

..रजनीश (15.06.18)

Monday, May 28, 2018

घड़ी की टिक-टिक


वक्त गुजरता जाता है
समय बदलता जाता है
इक पल आता
इक पल जाता
पल दर पल मंजर बदलता
संसार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है

जो मैं था
वो अब मैं नहीं
जो तुम थे
वो अब तुम नही
पल दर पल बदलते धागे
करार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है

जो कोपल थी
अब पौधा है
जो पौधा था
अब दरख्त है
धरती पर दिन रात बदलते
और उसका श्रृंगार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है

जो बूंद में था
अब दरिया में
जो दरिया में
अब सागर में
सागर से बादल में जा
कहीं और बरसता जाता है
समय बदलता जाता है

ना सूरज वही
ना चांँद वही
ना धरती और ब्रम्हांड वही
संग घड़ी की टिक-टिक
कण-कण का रुप आकार बदलता जाता है
समय बदलता जाता है..
                   ....रजनीश (28.05.18)
   

Sunday, May 20, 2018

मंजिलें और खुशियाँ

जिंदगी के सफर में
मंजिल दर मंजिल
एक भागमभाग
में लगा हुआ
हमेशा हर ठिकाने पर
यही सोचा
कि क्या यही है वो मंजिल
जिसे पा लेना चाहता था
पर मंजिल दर मंजिल
बैठूँ कुछ सुकून से
इसके पहले ही
हर बार
मिल जाता है
एक नया पता
अगली मंजिल का
अब तक के सफर में
कई कदम चलने
कई जंग लड़ने
वक्त के पड़ावों को
पार करते करते
खुद को  भुला
मंजिलों का पीछा करने के बाद
अब सोचता हूँ
आखिर  मंजिलें है क्या
रुकता त़ो हूँ नही उनपर
वक्त तो रस्ते में ही गुजरता है
इसलिये अब
मंजिलों में खुशियाँ तलाशना छोड़
रस्ते की ओर देखता हूँ
और पाया है मैने
कि सारी खुशियाँ तो
रस्ते पर ही बिखरी पड़ी हैं
जबसे इन पर नजर पड़ी है
इन्हें  ही बटोरने में लगा हूँ
और अब हालात ये हैं
कि ख्याल ही नहीं रहा
मंजिलों का,
सफर बदस्तूर जारी है !
.....रजनीश (20.05.18)

Tuesday, May 1, 2018

आंखों देखी

उनकी बातों मेँ अपना सँसार देखा है
उन्हें जब भी देखा यार देखा प्यार देखा है

सुना है बचपन भगवान का चेहरा होता है
उसी चेहरे पे दरिंदों का अत्याचार देखा है

जो देखकर भी अनदेखा किया करती थीं
आज उन  बेफिक्र आखों में इन्तज़ार देखा है

ईमान की तलाश हमें ले गई जहाँ जहाँ
वहाँ इन्सानियत की खाल में भ्रष्टाचार देखा है

खुद को बचा रखने  बेच देते हैं खुद को
जहाँ अरमानों के सौदे ऐसा बाजार देखा है

इंसानियत के मरने की खबर बड़ी पुरानी है
पर मिल जाती है जिंदा ये चमत्कार देखा है

बीते वक्त को   पुकार देखा ललकार देखा
कभी लौटते कारवां को कभी सिर्फ गुबार देखा है

......रजनीश  (12.05.18)

Saturday, March 24, 2018

थोड़े की जरूरत



कैसे जिएं वो रिश्ता जिसमें थोड़ा प्यार ना हो
ना हो इन्कार की सूरत पर थोड़ा इकरार ना हो

आँधियाँ ही तय करेंगी उस नाव का किनारा
फँसी हो मझधार में पर जिसमें पतवार ना हो

ना बहारों की चाहत  ना महलों की ख्वाहिश
बस साँसें चलती रहे और जीना दुश्वार ना हो

गर आसाँ हो रास्ता तो मंजिल मजा नहीं देती
वो मोहब्बत भी क्या  जिसमें इन्तजार ना हो

घिर चाहतों , गुरूर , खुदगर्जी में घुटता दम
ऐसा घर बनाएँ जिसमें कोई दीवार ना हो

......रजनीश (24.03.18)

Tuesday, March 20, 2018

आवाज़


टूटता है दिल तो कोई आवाज़ नहीं होती
सुनना चाहो तो जरूरी आवाज़ नहीं होती

दौलत को दौलत चाहिए शोहरत को शोहरत
मोहब्बत कभी मोहब्बत की मोहताज नहीं होती

घोंप दे कोई खंजर आग में झोंक दे  कोई
मोहब्बत तो मोहब्बत है नाराज नहीं होती

यूं तो हैं हकीमखाने शहर की गलियों में कई
पर दवा ही हर दर्द का ईलाज नहीं होती

यूं तो चलते हैं सब  जुगत लगाते हैं सभी
पहुंच भी जाते गर किस्मत दगाबाज नहीं होती

ऐ किस्मत हर किसी से मत किया कर मजाक
हर शख्सियत मेरी तरह खुशमिजाज नहीं होती

इक और  सितम उठाने,पीने नया दर्द कोई
हाजिर हो जाते गर तबीयत नासाज नहीं होती

.....रजनीश (20.03.18)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....