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Sunday, April 15, 2012

कुछ शेर और थोड़े सच


इस जहाँ में किसी पर भरोसा नहीं होता
पर यहाँ पहरेदारों पर पहरा नहीं होता

यूं तो दुनिया भरी है चमक-ओ-दमक से
पर हर चमकता पत्थर हीरा नहीं होता

माना कुछ ऐसे ही रहे हैं तजुर्बे तुम्हारे
पर हर अजनबी साया लुटेरा नहीं होता

यूं तो मिल जाती है जगह रात बिताने
पर हर चहारदीवारी में बसेरा नहीं होता

भीतर झाँक लेते ना मिलता जहां ना सही
पर अपने चिराग तले अंधेरा नहीं होता

यूं तो रात के बाद सुबह आया करती है
पर हर अंधेरी रात का सबेरा नहीं होता

मुहब्बत अपने लिए हर आरज़ू अपने लिए
पर सच्चे प्यार का कोई दायरा नहीं होता

यूं तो ऊपर से दूर तलक दिखता है पानी
पर हर दरिया या सागर गहरा नहीं होता

बैठ लेता मैं अकेला उस खामोश तन्हाई में
पर तुम्हारी याद बिन वो पल गुजरा नहीं होता

यूं तो चंद लाइनें मैं लिख ही लेता हूँ हर रोज़
पर हर नई गज़ल में नया मिसरा नहीं होता
........रजनीश (15.04.2012)
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