दूर से मिलते आकर और चले जाते हैं दूर
दूर से ही दूर क्यों सीधे निकल नहीं जाते
दुहाई रिश्तों की और बयां हमनिवाला दिनों का
जाया करते हैं वक़्त क्यों मुद्दे पर नहीं आते
सारी रात चले महफिल और उनकी जाने की रट
पर जमे रहते हैं क्यों उठकर चले नहीं जाते
वादा मदद का और साथ मुश्किलों का बखानतकल्लुफ छोडकर क्यों सीधे पैसों पर नहीं आते
मुंह में राम राम और बगल में रखें रामपुरिया
पीठ पर ही वार क्यों सीने में घोप नहीं जाते
जो मिला न उनको और वही मिल गया हमको
फ़ीका मुस्कुराते हैं क्यों सीधे जल नहीं जाते
आँखों से टपके आँसू और कलेजे में पड़ी है ठंडक
छोड़ गमगुसारी क्यों जाकर खुशियाँ नहीं मनाते
छुपता नहीं छुपाने से और चेहरे से बयां हो जाता है
मुखौटे बदलते हैं क्यों ये बात समझ नहीं पाते
मुंह में राम राम और बगल में रखें रामपुरिया
पीठ पर ही वार क्यों सीने में घोप नहीं जाते
जो मिला न उनको और वही मिल गया हमको
फ़ीका मुस्कुराते हैं क्यों सीधे जल नहीं जाते
आँखों से टपके आँसू और कलेजे में पड़ी है ठंडक
छोड़ गमगुसारी क्यों जाकर खुशियाँ नहीं मनाते
छुपता नहीं छुपाने से और चेहरे से बयां हो जाता है
मुखौटे बदलते हैं क्यों ये बात समझ नहीं पाते
.....रजनीश (29.02.12)