गुजर जाते हैं वो फिर नहीं आते
पर कयामत बार-बार आती है
और दुनिया हर बार फिर से पैदा होती है
वक़्त का पहिया चलता रहता है
एक गोल घेरे में,
दुनिया की किस्मत में
वक़्त बार बार लौटता है
सुना ये भी है कि जा सकते हैं
वक़्त से आगे
और इसके पीछे भी
इसकी चाल का भी
कोई ठिकाना नहीं
कभी तेज कभी बहुत धीमा
मेरे कुछ पलों में
तुम्हारे बरसों गुजर सकते हैं
गुजरते पलों की रफ़्तार का
कुछ ऐसा ही है अपना भी तजुर्बा
कुछ बरस बीते पलों में
और बीते कुछ पल बरसों में
कभी मिला कोई जो था वक़्त से आगे
कोई गुजरे हुए पल में गड़ा
पर वक़्त नहीं मिला कहीं रुका हुआ,
वो हरदम चलता ही रहा
मैं तो नहीं पकड़ सका
मैं कोशिश कर सका
बस इसके साथ चलने की,
लौटते नहीं देखा मैंने
वक़्त को कभी
और कभी मिला जो मुड़कर
एक गुजरा हुआ पल
तो वो पल भी वही नहीं था
उसका चेहरा मिला
कुछ बदला बदला सा
वक़्त क्या सच मे गुजर जाता है
हमेशा हमेशा के लिए
क्या जिस पल मेंअभी हम हैं
वो सचमुच गुजर गया है
वो कौन सा पल है
जिसमें मैं हूँ अभी
कई बार चाहा कि
गुजरे वक़्त में जाकर
बदल दूँ अपना आने वाला कल
चाहा कि आने वाले कल
के घर दस्तक दे
मोड़ दूँ अपना आज का रास्ता,
सुना है मैं भाग सकता हूँ
तेज़ वक़्त से और तुम भी
पर मैं तो दौड़ हारता रहा हूँ
आज तलक इस वक़्त से,
तुम्हारी तुम जानो
ये बस वैसा ही चला
जैसा इसे मंज़ूर था
बदलते वक़्त की छाप
मिलती है जर्रे-जर्रे में
मैं नाप सकता हूँ
दूरियाँ पलों की
जो फैली पड़ी है
खुशियों और तनहाई के बीच
देखा है मैंने भी वक़्त को
सिर्फ गुजरते हुए
जान सका हूँ मैं तो सिर्फ यही कि
मुझे जो करना है वो इसी आज में
मैं तो सिर्फ इसे पूरा जीकर
बीते और आने वाले पलों को
बना सकता हूँ यादगार
इस कायनात के आगे
मैं कुछ नहीं तुम कुछ नहीं
दुनिया बार-बार बनेगी
पर मैं और तुम
क्या दुबारा होंगे यहाँ
क्या हमारा वक़्त लौटेगा
हमारा वक़्त है
सिर्फ ये आज
हमारा वक़्त है वो
जो है अभी और यहीं
जिस पल मैं मुख़ातिब हूँ तुमसे
बस ये पल हमारा है ....
रजनीश (25.02.2012)
टाइम ट्रेवल और सापेक्षता के सिद्धान्त पर