Thursday, June 26, 2014

बारिश का इंतज़ार

















बारिश ...
बारिश का इंतज़ार
जैसे बरसों से था

वक़्त की गरम धूप
पसीना भी सुखा ले गई थी
दिल पे बनी
मोटी दरारों में
कदम धँसने लगे थे

लगता है
भागते भागते
सूरज के करीब
पहुँच गया था मैं

जो इकट्ठा किया था
अपने हाथों से
अपनी किस्मत का पानी
वो भाप बना
उम्मीद के बादलों में
समा गया था

और जब गिरा पानी
बादलों से पहली बार
तो यूं लगा कि
भर जाएगा मेरा कटोरा
पूरा का पूरा

पर बादलों में
कहाँ था वो कालापन
कहाँ थी वो बरस जाने वाली बात
कुछ मतलबी हवाओं संग
कहीं और निकल गए बादल

जो थोड़ी बूँदा-बाँदी
ये वक़्त करा देता है
तरस खाकर,
उसी में भिगोये खुद को
इंतज़ार किया करते है

हरदम यही लगता है
कि होने को है
अपने हिस्से की बारिश

बारिश का इंतज़ार
बरसों से है ....
...............रजनीश (26.06.2014)
( जून में तो बारिश हुई नहीं ठीक से ,
मौसम विभाग के अनुसार 
अच्छी बारिश जुलाई में हो सकती है , 
पर  इस साल  की बारिश औसत से कम होगी ) 



Sunday, June 22, 2014

रेलगाड़ी ...छुक छुक छुक छुक



रेलगाड़ी रेलगाड़ी
छुक छुक छुक छुक
छुक छुक छुक छुक
बढ़ा किराया दिल मेरा बोले 
रुक रुक रुक रुक 
रुक रुक रुक रुक 



हम भी कभी रेल से थे जाते 
यहाँ वहाँ यात्रा कर आते 
पैसे देकर टिकट थे लाते 
जो च जाते  वो घर ले जाते 
अब तो जो हम लेकर जाते 
वो पैसे भी हैं कम पड़ जाते 

रेल बुलाती आज भी हमको 
छुक छुक छुक छुक
छुक छुक छुक छुक
पर जेब बेचारी है ये कहती 
रुक रुक रुक रुक 
रुक रुक रुक रुक 

कभी रेल का सफ़र था मजा
अब तो रेल का सफ़र है सजा  
क्यूंकि सस्ते में था हो जाता
रोटी के लिए भी कुछ बच जाता
कमरतोड़ महंगाई से निकला दम
कोई सस्ता रस्ता नज़र नहीं आता

 रेल बुलाती आज भी हमको 
छुक छुक छुक छुक
छुक छुक छुक छुक
पर जेब बेचारी है ये कहती 
रुक रुक रुक रुक 
रुक रुक रुक रुक 

....रजनीश (22.06.2014)
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....