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Friday, January 13, 2012

एक बूंद


ओस की इक बूंद 
जमकर घास पर, 
सुबह -सुबह 
मोती हो गई,  

ठंड की चादर ने 
दिया था उसे ठहराव 
कुछ पलों का, 
 फिर वो बूंद
सूरज की किरणों 
पर बैठ उड़ गई, 

छोड़कर घास की हथेली पर
एक मीठा अहसास
कह अलविदा 
 हवा में खो गई,

कुछ पलों का जीवन 
और दिल पर ताजगी भरी 
नमकीन अमिट छाप 
 एक बूंद छोड़ गई ...

घास पर उंगली फिरा 
महसूस करता हूँ 
उस बूंद का वजूद
जो भाप हो गई ...
...............................

एक बूंद में होता है सागर 
बूंदों से  दरिया बनता है 
बूंदों से बनती है बरखा
बूंद - बूंद शहद बनता है 
  
भरा होता है एक बूंद में  
दर्द जमाने भर का 
इकट्ठी होती  है खुशी बूंद-बूंद 
बूंद बूंद शराब बनती है 

प्यार की इक बूंद का नशा उतरता नहीं
इक बूंद सर से पैर भिगो देती है 
कहानी ख़त्म कर देती  है एक बूंद
एक बूंद ज़िंदगी बना देती है 
...
बूंद-बूंद चखो जाम ज़िंदगी का 
बूंद-बूंद जियो ज़िंदगी ....
...रजनीश (12.01.2012)

Sunday, February 6, 2011

आस

DSC00252
एक दिन, चढ़ गया है..
एक पत्ता, झड़ गया है..
एक दोस्ती,  टूट गयी है..
एक डोर, छूट गयी है..
एक पता, गुम गया है..
एक रास्ता, रुक गया है..
एक रंग , धुल गया है..
एक बंधन, खुल गया है..

एक कमरा, खाली है..
एक क़रार, जाली है..
एक किस्मत, रूठी है..
एक मुस्कान, झूठी है..
एक रिश्ता, अज़ीब है..
एक दिल, गरीब है..
एक डगर, अनजानी है..
एक सौदा, बेमानी है..
एक रात , बहुत लंबी है..
एक बात , बहुत लंबी है..
...............
...............
एक मयखाना , वहाँ साक़ी है..
एक जाम , अभी बाकी है..
एक सपना, अधूरा है..
एक पन्ना,  कोरा है..
एक आस , अभी ज़िंदा है..
एक इंसान, शर्मिंदा है..
एक धड़कन, मचलती है..
एक ज़िंदगी, चलती है ..…..
………………..रजनीश (06.02.2011)
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