ओस की इक बूंद
जमकर घास पर,
सुबह -सुबह
मोती हो गई,
ठंड की चादर ने
दिया था उसे ठहराव
कुछ पलों का,
फिर वो बूंद
सूरज की किरणों
पर बैठ उड़ गई,
छोड़कर घास की हथेली पर
एक मीठा अहसास
कह अलविदा
हवा में खो गई,
कुछ पलों का जीवन
और दिल पर ताजगी भरी
नमकीन अमिट छाप
एक बूंद छोड़ गई ...
घास पर उंगली फिरा
महसूस करता हूँ
उस बूंद का वजूद
जो भाप हो गई ...
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एक बूंद में होता है सागर
बूंदों से दरिया बनता है
बूंदों से बनती है बरखा
बूंद - बूंद शहद बनता है
भरा होता है एक बूंद में
दर्द जमाने भर का
इकट्ठी होती है खुशी बूंद-बूंद
बूंद बूंद शराब बनती है
प्यार की इक बूंद का नशा उतरता नहीं
इक बूंद सर से पैर भिगो देती है
कहानी ख़त्म कर देती है एक बूंद
एक बूंद ज़िंदगी बना देती है
...
बूंद-बूंद चखो जाम ज़िंदगी का
बूंद-बूंद जियो ज़िंदगी ....
...रजनीश (12.01.2012)