Thursday, February 20, 2014

एक धारा


एक धारा
बहती हुई
रेत पत्थरों के समंदर में
बिखर जाती है
टूट जाती है
खंड-खंड हो
खो जाती है
उसका रास्ता ही
बन जाता है
उसका दुश्मन
उसके हमसफर ही
बन जाते हैं
उसके लुटेरे
और एक जलमाला
पैदा होते होते
वाष्पित हो जाती है

एक धारा
बूंद-बूंद बढ़ती है
और धाराओं को मिलाती
पाटों को सींचती
जीवन बांटती
पहाड़ों को चीरती
सपने बसाती
समंदर हो जाती है
उसका रास्ता ही
उसे बनाता है
अमृता सरिता तरंगिणी निर्झरिणी

धारा है संभावना
बूंदें है शक्ति का संचय
बहने की ललक है ऊर्जा
रास्ता है नियति
प्रवाह की दिशा
लिख देती है
धारा का पूरी कहानी

पर मुड़ सकती है धारा
बदल  सकता है
उसके हाथ की लकीरों का मिजाज
बदला जा सकता है उसका रूप
बदला जा सकता है
रास्ता धारा का
ताकि बदल सके बना सके वो
अनगिनत जीवनों का भविष्य

ऐसी एक धारा कहलाती है यौवन ...
  ...रजनीश (20.02.2014)
                                                                  National Youth Day 
                                                                  12 January को समर्पित  

Thursday, February 13, 2014

प्रगति के पथ पर


क्या हो गया
कहाँ जा रहे हम
असहिष्णुता के रास्ते
अहंकार रथों पर
सब कुछ अपने कब्जे में करते
पूरे रास्ते को घेर चलते

अपनी सड़क
अपने कदम
थोड़ी भी जगह नहीं
औरों के लिए

अपनी ढपली
अपना राग
अपनी सोच
अपनी बात
अपने समीकरण
अपना दर्शन
अपना विचार
अपनी बिसात
आत्म मुग्ध
आत्म केन्द्रित

कदम कदम
बस अपना स्वार्थ
कदम कदम
छिद्रान्वेषण
कदम कदम
आलोचना
कदम कदम
ईर्ष्या
कदम कदम
प्रतिस्पर्धा

क्या यही है सच
क्या  यही है सही
क्या रास्ते होते ही हैं
अकेले और बस खुद के लिए
क्या यही है प्रारब्ध
क्या यही है नियति
क्या कोई और रास्ता नहीं ?


इसी रास्ते पर
यह भी लिखे देखा
स्वतन्त्रता /प्रगति /उन्नति
विश्वास नहीं होता !
शायद पत्थर
गलत लगा गया कोई
इतना संकरा कंटीला रास्ता
कैसे जुड़ा हो सकता है
इन शब्दों से ......................
रजनीश ( 13.02.2014)

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