एक धारा
बहती हुई
रेत पत्थरों के समंदर में
बिखर जाती है
टूट जाती है
खंड-खंड हो
खो जाती है
उसका रास्ता ही
बन जाता है
उसका दुश्मन
उसके हमसफर ही
बन जाते हैं
उसके लुटेरे
और एक जलमाला
पैदा होते होते
वाष्पित हो जाती है
एक धारा
बूंद-बूंद बढ़ती है
और धाराओं को मिलाती
पाटों को सींचती
जीवन बांटती
पहाड़ों को चीरती
सपने बसाती
समंदर हो जाती है
उसका रास्ता ही
उसे बनाता है
अमृता सरिता तरंगिणी निर्झरिणी
धारा है संभावना
बूंदें है शक्ति का संचय
बहने की ललक है ऊर्जा
रास्ता है नियति
प्रवाह की दिशा
लिख देती है
धारा का पूरी कहानी
पर मुड़ सकती है धारा
बदल सकता है
उसके हाथ की लकीरों का मिजाज
बदला जा सकता है उसका रूप
बदला जा सकता है
रास्ता धारा का
ताकि बदल सके बना सके वो
अनगिनत जीवनों का भविष्य
ऐसी एक धारा कहलाती है यौवन ...
...रजनीश (20.02.2014)
National Youth Day 12 January को समर्पित
10 comments:
धारा बहती है, मिलकर बढ़ती है, प्रवाह बनती है। प्रवाह बहाता है।
यौवन की धारा को भी सद् मार्ग मिल जाये तो जीवन पूर्णता को प्राप्त होता है...सुंदर कविता !
कल 22/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
सुंदर रचना !
बहुत सुन्दर
नदी की प्रत्येक धारा का अपने -अपने कार्य ,अपना -अपना नसीब !
dharaa hi pravah kii dishaa tai karti hai .
new postकिस्मत कहे या ........
New post: शिशु
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
aisi hi dhara banati hai jeevan..
bahut hi anupam kriti
shubhkamnayen
..... आपकी लेखनी कई बार नि:शब्द कर देती है
बेहद गहन एवं उत्कृष्ट पोस्ट
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