Thursday, February 20, 2014

एक धारा


एक धारा
बहती हुई
रेत पत्थरों के समंदर में
बिखर जाती है
टूट जाती है
खंड-खंड हो
खो जाती है
उसका रास्ता ही
बन जाता है
उसका दुश्मन
उसके हमसफर ही
बन जाते हैं
उसके लुटेरे
और एक जलमाला
पैदा होते होते
वाष्पित हो जाती है

एक धारा
बूंद-बूंद बढ़ती है
और धाराओं को मिलाती
पाटों को सींचती
जीवन बांटती
पहाड़ों को चीरती
सपने बसाती
समंदर हो जाती है
उसका रास्ता ही
उसे बनाता है
अमृता सरिता तरंगिणी निर्झरिणी

धारा है संभावना
बूंदें है शक्ति का संचय
बहने की ललक है ऊर्जा
रास्ता है नियति
प्रवाह की दिशा
लिख देती है
धारा का पूरी कहानी

पर मुड़ सकती है धारा
बदल  सकता है
उसके हाथ की लकीरों का मिजाज
बदला जा सकता है उसका रूप
बदला जा सकता है
रास्ता धारा का
ताकि बदल सके बना सके वो
अनगिनत जीवनों का भविष्य

ऐसी एक धारा कहलाती है यौवन ...
  ...रजनीश (20.02.2014)
                                                                  National Youth Day 
                                                                  12 January को समर्पित  

10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

धारा बहती है, मिलकर बढ़ती है, प्रवाह बनती है। प्रवाह बहाता है।

Anita said...

यौवन की धारा को भी सद् मार्ग मिल जाये तो जीवन पूर्णता को प्राप्त होता है...सुंदर कविता !

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 22/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर रचना !

Onkar said...

बहुत सुन्दर

वाणी गीत said...

नदी की प्रत्येक धारा का अपने -अपने कार्य ,अपना -अपना नसीब !

कालीपद "प्रसाद" said...

dharaa hi pravah kii dishaa tai karti hai .
new postकिस्मत कहे या ........
New post: शिशु

विभूति" said...

भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

prritiy----sneh said...

aisi hi dhara banati hai jeevan..


bahut hi anupam kriti

shubhkamnayen

संजय भास्‍कर said...

..... आपकी लेखनी कई बार नि:शब्‍द कर देती है
बेहद गहन एवं उत्‍कृष्‍ट पोस्‍ट

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....