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Saturday, August 13, 2011

असलियत


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नापना चाहते हो अपनी ऊंचाई
हिमालय के सामने खड़े हो जाना
जानना चाहते हो अपनी गहराई
सागर की लहरों में झांक लेना
परखना चाहते हो अपनी सीमा
क्षितिज को छूने की कोशिश करना
महसूस करना चाहते हो अपनी व्यापकता
बादलों के ऊपर से उड़ कर देखना

तब पाता चलेगा  तुम्हें
कितने छोटे हो तुम
कुछ भी तो नहीं
एक अंश मात्र
चोटी पर पहुँच कर
तुम हिमालय नहीं बन सकते
सागर को पार कर तुम सागर नहीं बन जाओगे

अपने चारों ओर जो ताना-बना बुना है तुमने
वो कितना कमजोर कितना झूठा है
तुम पहुँच गए दूर ग्रहों तक
बस एक तितली की तरह

तुम्हारा वजूद तुम्हारी धारणाएँ
तुम्हारा स्वत्व तुम्हारी शक्तियाँ
सिर्फ भ्रम है तुम्हारा ही पैदा किया हुआ
तुम और तुम्हारा ये विशाल मायाजाल
कुछ भी तो नहीं
तुम सिर्फ एक लहर हो
जो सिर्फ कुछ पलों के लिए होती है
और फिर गिरकर  खो  जाती है
सागर के सीने में 

इसीलिए झुको ,
धरती की गोद में  बैठकर देखो 
एक बच्चा बनकर
और बह जाओ
जीवन की धारा में
तिनके की तरह
.....रजनीश (12.08.2011)
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