बारिश की बूंदें
गरम तवे सी जमीं पर
छन्न से गिर गिर
भाप हो जाती हैं
हवा की तपिश
हवा हो जाती है
पहली बारिश में
जैसे कोई अपना
बरसों इंतज़ार करा
छम्म से सामने
आ गया हो अचानक
बह जाती है सारी जलन
बूंदों से बने दरिया में
पर तपिश की जगह
बैठ जाती है आकर
एक बैचेनी एक तकलीफ
जैसे एक रिश्ता दे रहा हो
आँखों को ठंडक
छोड़ दिल में एक भारीपन
रिश्तों की उमस का एहसास
बारिश के दिनों
बार बार होता रहता है
जिन्हें बुलाया था
मिन्नते कर
उन्हीं बादलों के
छंटने का इंतज़ार
कराती है एक उमस
बरसात के दिनों
और रिश्तों की उलझनों में
जो देता है ठंडक
वही उमस क्यूँ देता है...
.....(रजनीश 17.06.12)
[1]
तनाव में सांस लेती
ख़्वाहिशों की प्लेटें
दुनियादारी के बोझ में डूबी
मजबूरीयों के सागर तले
रिश्तों की चट्टानों के बीच
अक्सर टकराती हैं
कभी मैं पूरा हिल जाता हूँ
कभी दिल की गहराइयों में
एक और सुनामी आ जाती है
[2]
कई बार किया है सामना
पैरों तले काँपती जमीन का
कई दरारें पड़ीं
दिल की दीवारों में
कई बार रेत से
हसरतों के घर बनाते
और सागर की लहरें गिनते गिनते
मुझे यकायक आई सूनामी ने
मीलों दूर अनजानी
सड़कों पर ला फेंका और तोड़ा है
हर बार खुद को
बटोरकर जोड़कर
वापस आ जाता हूँ
फिर उस सागर किनारे
फिसलती रेत पर चलने
किनारे से टकराती लहरों
के थपेड़ों में खुद को भिगोने
और बनाने फिर से एक घरौंदा रेत का
.......रजनीश (13.04.2012)
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