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Wednesday, February 15, 2012

तुम्हारा ही नाम











सुबह की सुहानी ठंड
बिछाती है ओस की चादर
घास पर उभर आती है
एक इबारत
हर तरफ
दिखता है बस
तुम्हारा ही नाम

राहों से गुजरते
वक़्त की धूल
चढ़ जाती है काँच पर
पर हर बार
गुम होने से पहले
इन उँगलियों से
लिखवा लिया करती है
तुम्हारा ही नाम

एक पंछी अक्सर
दाना चुगते-सुस्ताते
मुंडेर पर छत की
गुनगुनाता और बतियाता है
और वहीं पास बैठे
पन्नों पे ज़िंदगी उतारते-उतारते
उसकी चहचहाहट में
मुझे मिलता है बस
तुम्हारा ही नाम

सूरज को विदा कर
जब होता हूँ
मुखातिब मैं खुद से
तो बातें तुम्हारी ही होती हैं
और फिर थपकी देकर
लोरी गाकर जब रात सुलाती है
तो खो जाता हूँ सपनों में
सुनते सुनते बस
तुम्हारा ही नाम
......रजनीश (15.02.2012)
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