हो कितनी ही काली रात सुबह जरूर आती है
बाग-ए-बहार दूर सही गमोसितम की महफ़िल से
फूलों की महक भला काँटों से कहाँ रुक पाती है
मंज़िलें खो जाने पर कहाँ ख़त्म होता है सफ़र
गुम हो रही राह से भी एक राह निकल आती है
फिक्र नहीं गम-ओ-दर्द का बसेरा मिलता है हर राह
कड़ी धूप हो या बारिश एक छांव तो मिल जाती है
राह-ए-इश्क में लुटा खुद को सारी खुशियाँ लुटा दो
गमों के साये गुम जाते हैं हर खुशी लौट आती है
........रजनीश (27.02.15)
No comments:
Post a Comment