अच्छे दिन की आस में बीत गए कई माह
आओ खोजें उन्हें लगता भूल गए हैं राह
उठती-गिरती पेट्रोल की कीमत साँपसीढ़ी का खेल
अब पैदल चलना सीखो छोड़ो मोटर गाड़ी रेल
कहाँ बचाएं कहाँ लगाएँ जो थोड़ा सा अपने पास
वही पुराना दर्द लिए देखो भटके मिडिल-क्लास
सपनों के बाजार में लुट गई जेब हम ढेर
सौदागर राजा बने अब तो नहीं हमारी खैर
....रजनीश ( 01.03.15)
4 comments:
सुन्दर प्रस्तुति
बिल्कुल खैर नहीं है जी।
बढ़िया कटाक्ष..
कौन से अच्छे दिन?किसके अच्छे दिन?
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