Thursday, February 17, 2011

दृष्टिभ्रम

mysnaps_diwali 161
कंपकंपाते होठों पर 
अटके से थे शब्द कुछ ...
हवा से हिलते केश में,
ढँका मानो आमंत्रण...
कांपते हाथों में,
फंसी थी एक पाती...
झुकी पलकों में ,
छुपा सा लगा समर्पण ...
उकेरता था पाँव, कुछ वृत्त ,
उसने, लगा सब कुछ कहा था ,
पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ....
हाथ में उसके सिर्फ एक नज़्म थी,
जिसमें कुछ नहीं बस अलविदा लिखा था...
...............रजनीश (16.02.2011)

6 comments:

निर्मला कपिला said...

पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ....
हाथ में उसके सिर्फ एक नज़्म थी,
जिसमें कुछ नहीं बस अलविदा लिखा था...
मार्मिक अभिव्यक्ति। रचना बहुत अच्छी लगी। शुभकामनायें।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

bahut sundar shabd diya hai komal bhavon ko...

amit kumar srivastava said...

jo tapak gaya vo aansu hai ,jo atak gaya vo moti hai....nice lines..

vandana gupta said...

॥ आह! बेहद खूबसूरत्।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ...

अंतर्मन के दर्द को पढ़ पाना आसन नहीं होता...... बहुत सुंदर पंक्तियाँ रची हैं.....

Amit Chandra said...

झुकी पलकों में ,
छुपा सा लगा समर्पण ...
उकेरता था पाँव, कुछ वृत्त ,
उसने, लगा सब कुछ कहा था ,
पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ....
हाथ में उसके सिर्फ एक नज़्म थी,
जिसमें कुछ नहीं बस अलविदा लिखा था...

दिल के दर्द को बयान करती हुई एक खुबसुरत रचना। आभार।

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....