कंपकंपाते होठों पर
अटके से थे शब्द कुछ ...
हवा से हिलते केश में,
ढँका मानो आमंत्रण...
कांपते हाथों में,
फंसी थी एक पाती...
झुकी पलकों में ,
छुपा सा लगा समर्पण ...
उकेरता था पाँव, कुछ वृत्त ,
उसने, लगा सब कुछ कहा था ,
पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ....
हाथ में उसके सिर्फ एक नज़्म थी,
जिसमें कुछ नहीं बस अलविदा लिखा था...
...............रजनीश (16.02.2011)
6 comments:
पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ....
हाथ में उसके सिर्फ एक नज़्म थी,
जिसमें कुछ नहीं बस अलविदा लिखा था...
मार्मिक अभिव्यक्ति। रचना बहुत अच्छी लगी। शुभकामनायें।
bahut sundar shabd diya hai komal bhavon ko...
jo tapak gaya vo aansu hai ,jo atak gaya vo moti hai....nice lines..
॥ आह! बेहद खूबसूरत्।
पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ...
अंतर्मन के दर्द को पढ़ पाना आसन नहीं होता...... बहुत सुंदर पंक्तियाँ रची हैं.....
झुकी पलकों में ,
छुपा सा लगा समर्पण ...
उकेरता था पाँव, कुछ वृत्त ,
उसने, लगा सब कुछ कहा था ,
पर, था छुपाता दरअसल वो एक मोती,
जो बचा नज़रें वहीं, पलक से गिरा था ....
हाथ में उसके सिर्फ एक नज़्म थी,
जिसमें कुछ नहीं बस अलविदा लिखा था...
दिल के दर्द को बयान करती हुई एक खुबसुरत रचना। आभार।
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