जहां रहता हूँ मैं, है वो इक दुनिया,
जहां घर तुम्हारा , वो भी इक दुनिया...
देखा था जिसे ख्वाब में , वो इक दुनिया,
हक़ीक़त में जो मिली , वो भी इक दुनिया...
था छोड़ा कल जिसे, वो इक दुनिया,
कल मिलूँगा जहां तुमसे, वो भी इक दुनिया...
बाहर मिली जो मुझसे, वो इक दुनिया,
ज़िंदा जो मेरे भीतर , वो भी इक दुनिया...
है तेरी और मेरी, साझा वो इक दुनिया,
है ना तेरी और ना मेरी , भी इक दुनिया !
तेरी दुनिया के अंदर मेरी, वो इक दुनिया,
मेरी दुनिया के अंदर तेरी, भी इक दुनिया...
जो मेरे कदमों तले कुचली, वो थी इक दुनिया,
जिसे हाथों में है सम्हाला , ये भी इक दुनिया ...
.....रजनीश (20.02.2011)
7 comments:
जैसी भी हमें तो बहुत भाती है ये दुनिया.
अलग अलग रंगों में, फिर भी सुन्दर है ये दुनियाँ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर है ये दुनियाँ अलग अलग रंगों में| बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
रंग बिरंगी है ये दुनिया
इस रंग बिरंगी दुनिया के विभिन्न पहलुओं पर बहुत ख़ूबसूरती से प्रकाश डाला है आपने ।
बधाई ।
सच में ये दुनिया बहुत ही प्यारी है,और आपकी कविता उतनी ही न्यारी है।
*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
सच है...कई रंगों में रंगी है एक दुनियां में कई कई दुनिया.....
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