[1]
जीवन ,माना चक्र है ।
पर कहते हो
है ये सीढ़ी भी ,
कहाँ टिकी ऊपर ये सीढ़ी ?
वो छोर,
क्यूँ नहीं दिखता है ?
[2]
प्रेम धुरी से बंधे,
दो पहिये,
जीवन पथ पर चलते हैं ।
इसे हाँकता कौन सारथी ?
वो चेहरा,
क्यूँ नहीं दिखता है ?
[3]
तुमने छोड़ दिया था ,
सब कुछ ,
क्या सच में वो अब पास नहीं ?
त्याग तुम्हारा,
हरपल रहते दंभ के संग
क्यूँ दिखता है ?
[4]
प्रेम तुम्हें है
प्रेम मुझे है,
और अगर एकात्म हैं हम ।
फिर हरदम, हमारे बीच
रखा ये समझौता
क्यूँ दिखता है ?
[5]
प्रखर मस्तिष्क,
संवेदनशील,
और है निपुण सम्प्रेषण में ,
फिर वो दोपाया, पूंछकटा
जानवर सा
क्यूँ दिखता है ?
.....रजनीश (27.02.2011)
6 comments:
शानदार!
विचारणीय प्रश्न हैं।
wah.sab ki sab behad khoobsurat.
हर एक क्षणिका अपने आपमें लाजवाब
lajvab kshanikayen.
बहुत खूब रजनीश जी ! हार्दिक शुभकामनायें !
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