तुम कहो जो ,चाँद-तारे
इस धरा पर तोड़ लाऊं ,
है असंभव ये , कहो तो,
सर्वस्व अपना मैं लुटाऊँ ...
अनुभूत कर सकते तभी,
जब पथ पर चलने तुम लगो ,
हृदय ये मेरा , पथ है वो,
आओ, चलो , खुद से मिलो ...
प्रेम होता स्व को खोकर ,
दूसरा बन जाओ तभी ,
मैं नहीं हूँ , तुम हूँ मैं;
क्षण भर को तो, देखो कभी...
खुद को खो दो, प्रेम पा लो,
प्रत्येक कण में प्रेम है ,
अप्रेम जैसा कुछ नहीं ,
शाश्वत, जगत में प्रेम है ...
हृदय होते नहीं है पूरक,
वे स्वयं सम्पूर्ण हैं,
जब पूर्ण मिलता पूर्ण में ,
तब प्रेम होता पूर्ण है...
.........रजनीश (14.02.2011)
6 comments:
प्रेम की बेहतरीन प्रस्तुति। आपको प्रेम दिवस की शुभकामनाएं और इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार।
आज के दिन आपको मेरी प्यार भरी शुभकामनायें
'jab poorn milta poorn me
tab prem hota poorn hai'
laukik se alaukik prem tak pahunchati hai rachna.
हृदय होते नहीं है पूरक,
वे स्वयं सम्पूर्ण हैं,
जब पूर्ण मिलता पूर्ण में ,
तब प्रेम होता पूर्ण है...
बस यही सत्य है…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
सत्य वचन है सर।
प्रेम की बहुत सुंदर परिभाषा दी आपने। बधाई।
---------
अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
Post a Comment