कुछ बेवफ़ा बूंदों ने
छोड़ दिया दामन,
और अँखियों को रुला ,
जमीं की हो गईं ....
......
एक बूंद और थी ,
जिसने न छोड़ा हाथ और
न दिया साथ
वो किनारे पर बैठी –बैठी
हवा में खो गई...
....
पर पलकों के साये में ,
जो झील रहती है,
उसमें बहुत पानी है ....
उसे कुछ गहरा किया है
और किनारों पर
थोड़ी मिट्टी डाली है ....
अगले सावन में तो पूरी भर जाएगी ।
.......रजनीश (05.02.2011)
4 comments:
bahut sunder rachna hai
sunder rachna
पर पलकों के साये में ,
जो झील रहती है,
उसमें बहुत पानी है ....
उसे कुछ गहरा किया है
और किनारों पर
थोड़ी मिट्टी डाली है ....
अगले सावन में तो पूरी भर जाएगी ।
उफ़! दर्द का गहन चित्रण किया है ।
bahut achchha ....sundar
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